लोकमान्य तिलक ने देश में नवीन राष्ट्रीय चेतना और देश - सेवा की भावना उत्पन्न करने के लिए मराठी भाषा में ' केसरी ' और अंग्रेजी भाषा में ' मराठा ' नाम के साप्ताहिक पत्रों का प्रकाशन शुरू किया । उस युग में जब अंग्रेजों का शासन था , लोकमान्य तिलक का ' केसरी ' और कलकत्ते का
' अमृत बाजार पत्रिका ' ही ऐसे पत्र थे जो निर्भय होकर सरकार की अनुचित कार्यवाहियों की बड़ी आलोचना करते थे और बड़े बड़े अधिकारियों की चालों का भंडाफोड़ कर देते थे ।
' केसरी ' के मुखपृष्ठ पर ही आदर्श - वाक्य ( मोटो ) के रूप में एक पद्द छपा करता था जिसका अर्थ था ----- ' यह भारत रूपी सिंह अभी निद्रित अवस्था में पड़ा है और इसी से निष्क्रिय जान पड़ता है । तुम्हारा हित इसी में है कि समय रहते ही इस देश को छोड़ जाओ अन्यथा यह जब जागृत होगा तो जान बचाना कठिन पड़ जायेगा । '
कोल्हापुर के दीवान ने , जो अंग्रेजों का पिट्ठू था , वहां के शासक को अपदस्थ करके राज्य के समस्त साधनों को स्वयं हथियाने का कुचक्र रचाया । लोकमान्य तिलक ने
उसकी सब ' करतूतों ' को प्रकट करके ऐसे तीव्र प्रहार किये कि चारो तरफ हलचल मच गई । अंग्रेज सरकार ने उनपर मानहानि का मुकदमा चलाया और उन्हें 18 महीने कठोर कारावास की सजा दी गई । जेल से छूटने पर उनका ऐसा भव्य स्वागत हुआ कि उसकी मिसाल नहीं । तिलक महाराज ने स्वयं कष्ट सहकर जेल को भी पवित्र कर दिया । अब समाचार पत्रों में जेल खाने का नाम ' कृष्ण - जन्म - मंदिर ' लिखा जाने लगा ।
' अमृत बाजार पत्रिका ' ही ऐसे पत्र थे जो निर्भय होकर सरकार की अनुचित कार्यवाहियों की बड़ी आलोचना करते थे और बड़े बड़े अधिकारियों की चालों का भंडाफोड़ कर देते थे ।
' केसरी ' के मुखपृष्ठ पर ही आदर्श - वाक्य ( मोटो ) के रूप में एक पद्द छपा करता था जिसका अर्थ था ----- ' यह भारत रूपी सिंह अभी निद्रित अवस्था में पड़ा है और इसी से निष्क्रिय जान पड़ता है । तुम्हारा हित इसी में है कि समय रहते ही इस देश को छोड़ जाओ अन्यथा यह जब जागृत होगा तो जान बचाना कठिन पड़ जायेगा । '
कोल्हापुर के दीवान ने , जो अंग्रेजों का पिट्ठू था , वहां के शासक को अपदस्थ करके राज्य के समस्त साधनों को स्वयं हथियाने का कुचक्र रचाया । लोकमान्य तिलक ने
उसकी सब ' करतूतों ' को प्रकट करके ऐसे तीव्र प्रहार किये कि चारो तरफ हलचल मच गई । अंग्रेज सरकार ने उनपर मानहानि का मुकदमा चलाया और उन्हें 18 महीने कठोर कारावास की सजा दी गई । जेल से छूटने पर उनका ऐसा भव्य स्वागत हुआ कि उसकी मिसाल नहीं । तिलक महाराज ने स्वयं कष्ट सहकर जेल को भी पवित्र कर दिया । अब समाचार पत्रों में जेल खाने का नाम ' कृष्ण - जन्म - मंदिर ' लिखा जाने लगा ।
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