मकदूनिया का शासक बनते ही सिकन्दर ने विश्व - विजय के सपनो को साकार करना आरम्भ किया । सर्वप्रथम उसने अपनी सैन्य शक्ति का विस्तार किया और एक - एक करके सारे यूनानी राज्यों को जीत लिया और उन हारे हुए राजाओं के साथ उदारता का व्यवहार करके उन्हें अपना मित्र बना लिया ।
यूनान के पश्चात सिकन्दर फारस की ओर उन्मुख हुआ । फारस का राजा दारा भी विश्व - विजय के स्वप्न देखा करता था और इसके लिए उसने बहुत बड़ी सेना एकत्रित कर रखी थी । आइसस के मैदान में दोनों सेनाओं की टक्कर हुई । प्रशिक्षित और अनुशासित सेना के बल पर सिकन्दर ने अपने से तीन गुनी सेना रखने वाले दारा को पराजित कर दिया । वह मैदान छोड़कर भाग निकला उसकी माँ , पत्नी तथा बच्चे पकड़े गये ।
सिकंदर उनके साथ बड़ी सभ्यता से पेश आया । दारा की पत्नी अत्यंत रूपवती थी । सिकन्दर के स्थान पर कोई और होता तो उसको अपनी पत्नी बना लेता पर सिकन्दर के पास चारित्रिक बल था , उसने ऐसा नहीं किया । वह जानता था कि चरित्र ही मनुष्य की सबसे बड़ी सम्पदा है । वह तो राज्यों को जीतना भर चाहता था , पराजित राजाओं की रानियों को अपमानित करना नहीं ।
दारा ने पराजित होकर आत्म समपर्ण नहीं किया , वह अपने बचे हुए सैनिकों के साथ इधर - उधर भागता फिरा । एक दिन उसके ही एक सैनिक ने उसे छुरे से घायल करके मरा समझ कर छोड़ दिया । सिकन्दर को वह मृतप्राय दशा में मिला । अपने मरणासन्न शत्रु को उसने अपना दुशाला उड़ाकर सम्मान प्रकट किया । दारा ने उसे अपनी पत्नी व बच्चों के प्रति किये सम्मानजनक व्यवहार के लिए धन्यवाद दिया । सिकन्दर में यह चारित्रिक बल था , उसे उसके गुरु अरस्तू ने गढ़ा था । अरस्तू जैसा गुरु पाकर ही सिकन्दर महान बना ।
यूनान के पश्चात सिकन्दर फारस की ओर उन्मुख हुआ । फारस का राजा दारा भी विश्व - विजय के स्वप्न देखा करता था और इसके लिए उसने बहुत बड़ी सेना एकत्रित कर रखी थी । आइसस के मैदान में दोनों सेनाओं की टक्कर हुई । प्रशिक्षित और अनुशासित सेना के बल पर सिकन्दर ने अपने से तीन गुनी सेना रखने वाले दारा को पराजित कर दिया । वह मैदान छोड़कर भाग निकला उसकी माँ , पत्नी तथा बच्चे पकड़े गये ।
सिकंदर उनके साथ बड़ी सभ्यता से पेश आया । दारा की पत्नी अत्यंत रूपवती थी । सिकन्दर के स्थान पर कोई और होता तो उसको अपनी पत्नी बना लेता पर सिकन्दर के पास चारित्रिक बल था , उसने ऐसा नहीं किया । वह जानता था कि चरित्र ही मनुष्य की सबसे बड़ी सम्पदा है । वह तो राज्यों को जीतना भर चाहता था , पराजित राजाओं की रानियों को अपमानित करना नहीं ।
दारा ने पराजित होकर आत्म समपर्ण नहीं किया , वह अपने बचे हुए सैनिकों के साथ इधर - उधर भागता फिरा । एक दिन उसके ही एक सैनिक ने उसे छुरे से घायल करके मरा समझ कर छोड़ दिया । सिकन्दर को वह मृतप्राय दशा में मिला । अपने मरणासन्न शत्रु को उसने अपना दुशाला उड़ाकर सम्मान प्रकट किया । दारा ने उसे अपनी पत्नी व बच्चों के प्रति किये सम्मानजनक व्यवहार के लिए धन्यवाद दिया । सिकन्दर में यह चारित्रिक बल था , उसे उसके गुरु अरस्तू ने गढ़ा था । अरस्तू जैसा गुरु पाकर ही सिकन्दर महान बना ।
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