' किसी भी देश के स्वाधीनता आन्दोलन में उचित मार्ग चुनने का बड़ा महत्व है । यदि ऐसा न किया जाये तो प्रकट में बड़ा परिश्रम , त्याग , कष्ट सहन करते हुए भी हम अपनी शक्ति को बर्बाद करते रहते हैं और प्रगति के मार्ग पर बहुत कम अग्रसर हो पाते हैं । '
लेनिन के समान व्यक्ति समस्त राष्ट्र में बहुत कम ही होते हैं जो समय की गति को बिलकुल ठीक समझ सकते हैं और अनुकूल विधान बना सकते हैं ।
रुसी क्रान्ति को लेनिन ने किस प्रकार अपना सर्वस्व होम करके खड़ा किया और कार्यरूप में परिणित हो जाने पर किस प्रकार प्राणों की बाजी लगाकर उसकी रक्षा की ------ यह रुसी इतिहास की अमर गाथा है । लेनिन ( जन्म 1870 ) ने जब से होश संभाला निरंतर जनता के अधिकारों और गरीबों के उद्धार की लगन उन्हें लगी रही । लेनिन का बड़ा भाई अलेक्जैन्डर भी क्रान्तिकारी था और विद्दार्थी अवस्था में ही उसने कार्ल मार्क्स की एक पुस्तक का रुसी भाषा में अनुवाद किया था ।
1887 में उसने जार की हत्या के षडयंत्र में प्रमुख भाग लिया । पकड़े जाने पर उसने अदालत के सामने कहा --- " रूस के वर्तमान निरंकुशतापूर्ण शासन में गुप्त हत्याओं के सिवाय और किसी उपाय से राजनीतिक सुधार नहीं हो सकता है । मुझे मृत्यु का डर नहीं है । मेरे बाद अवश्य ही अन्य लोग आगे बढ़ेंगे और एक दिन जारशाही को जड़मूल से उखाड़ कर फेंक देंगे ।
उस समय अलेक्जैन्डर को इस बात की कल्पना भी न थी कि उसका छोटा भाई ही उसकी इस मनोकामना को पूरा करेगा । अपने भाई का इस प्रकार असामयिक अंत होने से लेनिन के ह्रदय को तीव्र धक्का लगा और वह सदा के लिए जारशाही का दुश्मन बन गया ।
पर साथ ही लेनिन ने यह अनुभव किया कि यह षडयंत्र और गुप्त हत्याओं का मार्ग सही नहीं है । उस अवसर पर उसके मुंह से निकला ---- " नहीं , यह रास्ता ठीक नहीं है , हम इस पर चलकर सफलता नहीं पा सकते । " उसी समय से वह उस नवीन पथ का पथिक बन गया जो उसकी समझ में रूस को जार की निरंकुश सत्ता से मुक्त कराने के लिए कारगर था ।
लेनिन का विश्वास था कईयदि वह सच्चाई के साथ कर्तव्य मार्ग पर डटा रहेगा तो अंतिम विजय उसी की होगी । वह अपने साथियों को भी उत्साहित किया करता था ---- " निराश मत हो । यह अंधकार अवश्य दूर होगा । । "
लेनिन यश और सम्मान की लालसा से बहुत ऊँचा उठा हुआ था , वह एक अँधेरी कोठरी में बैठकर गुप्त रूप से अपना काम किया करता था ।
लेनिन के समान व्यक्ति समस्त राष्ट्र में बहुत कम ही होते हैं जो समय की गति को बिलकुल ठीक समझ सकते हैं और अनुकूल विधान बना सकते हैं ।
रुसी क्रान्ति को लेनिन ने किस प्रकार अपना सर्वस्व होम करके खड़ा किया और कार्यरूप में परिणित हो जाने पर किस प्रकार प्राणों की बाजी लगाकर उसकी रक्षा की ------ यह रुसी इतिहास की अमर गाथा है । लेनिन ( जन्म 1870 ) ने जब से होश संभाला निरंतर जनता के अधिकारों और गरीबों के उद्धार की लगन उन्हें लगी रही । लेनिन का बड़ा भाई अलेक्जैन्डर भी क्रान्तिकारी था और विद्दार्थी अवस्था में ही उसने कार्ल मार्क्स की एक पुस्तक का रुसी भाषा में अनुवाद किया था ।
1887 में उसने जार की हत्या के षडयंत्र में प्रमुख भाग लिया । पकड़े जाने पर उसने अदालत के सामने कहा --- " रूस के वर्तमान निरंकुशतापूर्ण शासन में गुप्त हत्याओं के सिवाय और किसी उपाय से राजनीतिक सुधार नहीं हो सकता है । मुझे मृत्यु का डर नहीं है । मेरे बाद अवश्य ही अन्य लोग आगे बढ़ेंगे और एक दिन जारशाही को जड़मूल से उखाड़ कर फेंक देंगे ।
उस समय अलेक्जैन्डर को इस बात की कल्पना भी न थी कि उसका छोटा भाई ही उसकी इस मनोकामना को पूरा करेगा । अपने भाई का इस प्रकार असामयिक अंत होने से लेनिन के ह्रदय को तीव्र धक्का लगा और वह सदा के लिए जारशाही का दुश्मन बन गया ।
पर साथ ही लेनिन ने यह अनुभव किया कि यह षडयंत्र और गुप्त हत्याओं का मार्ग सही नहीं है । उस अवसर पर उसके मुंह से निकला ---- " नहीं , यह रास्ता ठीक नहीं है , हम इस पर चलकर सफलता नहीं पा सकते । " उसी समय से वह उस नवीन पथ का पथिक बन गया जो उसकी समझ में रूस को जार की निरंकुश सत्ता से मुक्त कराने के लिए कारगर था ।
लेनिन का विश्वास था कईयदि वह सच्चाई के साथ कर्तव्य मार्ग पर डटा रहेगा तो अंतिम विजय उसी की होगी । वह अपने साथियों को भी उत्साहित किया करता था ---- " निराश मत हो । यह अंधकार अवश्य दूर होगा । । "
लेनिन यश और सम्मान की लालसा से बहुत ऊँचा उठा हुआ था , वह एक अँधेरी कोठरी में बैठकर गुप्त रूप से अपना काम किया करता था ।
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