' मनस्वी और कर्मठ व्यक्ति किसी भी दशा में क्यों न रहें , वह समाज सेवा का कोई न कोई कार्य कर ही सकते हैं l '
लेनिन को साइबेरिया में तीन वर्ष के लिए निर्वासन का दंड दिया गया l उच्च न्यायालय के जजों ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे असाधारण विचार वाले व्यक्तियों का जनता के बीच रहना अवांछनीय है , उनके लिए उपयुक्त निवास स्थान साइबेरिया का बर्फिस्तान है । इस आदेश के अनुसार लेनिन को शुसेनिस्क नामक गाँव में जाकर नजरबंदी का जीवन बिताना पड़ा । साइबेरिया उस ज़माने में रूस का ' काला पानी ' समझा जाता था ।
जारशाही का विरोध करने वाले राजनीतिक कैदियों को वहीँ सजा भोगने के लिए भेजा जाता था ।
' शुसेनिस्क ' के छोटे से घर में लेनिन नजरबंदी का जीवन व्यतीत करने पहुँचा । वहां ठण्ड इतनी अधिक पड़ती थी की रात के समय खून जम सा जाता था । रास्ते सुनसान पड़े रहते थे । ऐसे एकांत स्थान में जहाँ बात करने को , सुख - दुःख का हाल पूछने को एक भी प्राणी न हो , एक शिक्षित और सभ्यता की गोद में पले व्यक्ति का जीवन असहनीय हो जाता था । अनेक राजनीतिक कैदी वहां के कष्टों में मर -खप जाते थे ।
लेकिन लेनिन के दिमाग में इतने अधिक विचार थे और अध्ययन की प्रबल आकांक्षा थी कि उसने अपना तमाम वक्त इसी में खर्च किया । उसने वहां रहते हुए दो पुस्तकें लिखीं जो आगे चलकर श्रमजीवी आन्दोलन के कार्यकर्ताओं के लिए बड़ी प्रेरणादायक सिद्ध हुईं । वह यहाँ रहकर भी रूस के श्रमजीवी आन्दोलन और राजनीतिक परिवर्तनों का पता रखता था और गुप्त रूप से अपनी कमेटी वालों को हिदायतें देकर आन्दोलन को जीवित रखे हुए था । इसी का परिणाम था कि जब तीन वर्ष बाद वह निर्वासन से लौटे तो उन्हें फिर से कार्य आरम्भ करने में अधिक समय बर्बाद नहीं करना पड़ा । यहीं पर रहकर उन्होंने रूस के श्रमजीवी आन्दोलन को ठीक से चलाने के लिए एक नियमित अखबार निकालने की योजना भी बनाई ।
लेनिन ने जो कानून का अध्ययन किया था वह ' शुसेनिस्क ' में काम आया । वह फुर्सत के समय वहां के किसान , मजदूरों आदि से मिलकर उन्हें मुकदमों तथा अन्य शिकायतों के संबंध में सलाह दिया करते थे । इससे वह लोगों में 'वकील ' के नाम से मशहूर हो गये । इससे अनेक लोगों का बड़ा उपकार हो जाता था और वे सरकारी कर्मचारियों के अन्याय से बच जाते थे ।
लेनिन लन्दन के हाइगेट कब्रिस्तान में कार्ल मार्क्स की कब्र के पास घंटों बैठकर जार शाही का तख्ता पलटने और असीम शक्तिशाली बोलशेविक दल का स्वप्न देखा करता था | अपनी कर्मठता , मनोयोग और नि:स्वार्थभाव से जन - कल्याण के लिए कर्तव्यपालन कर उस स्वप्न को साकार किया । प्रसिद्ध मानवतावादी विचारक रोमारोलां ने लिखा है ----- " लेनिन वर्तमान शताब्दी का सबसे बड़ा कर्मठ और स्वार्थ त्यागी व्यक्ति था । उसने आजीवन घोर परिश्रम किया पर अपने लिए कभी किसी प्रकार के लाभ की इच्छा नहीं की । "
लेनिन को साइबेरिया में तीन वर्ष के लिए निर्वासन का दंड दिया गया l उच्च न्यायालय के जजों ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे असाधारण विचार वाले व्यक्तियों का जनता के बीच रहना अवांछनीय है , उनके लिए उपयुक्त निवास स्थान साइबेरिया का बर्फिस्तान है । इस आदेश के अनुसार लेनिन को शुसेनिस्क नामक गाँव में जाकर नजरबंदी का जीवन बिताना पड़ा । साइबेरिया उस ज़माने में रूस का ' काला पानी ' समझा जाता था ।
जारशाही का विरोध करने वाले राजनीतिक कैदियों को वहीँ सजा भोगने के लिए भेजा जाता था ।
' शुसेनिस्क ' के छोटे से घर में लेनिन नजरबंदी का जीवन व्यतीत करने पहुँचा । वहां ठण्ड इतनी अधिक पड़ती थी की रात के समय खून जम सा जाता था । रास्ते सुनसान पड़े रहते थे । ऐसे एकांत स्थान में जहाँ बात करने को , सुख - दुःख का हाल पूछने को एक भी प्राणी न हो , एक शिक्षित और सभ्यता की गोद में पले व्यक्ति का जीवन असहनीय हो जाता था । अनेक राजनीतिक कैदी वहां के कष्टों में मर -खप जाते थे ।
लेकिन लेनिन के दिमाग में इतने अधिक विचार थे और अध्ययन की प्रबल आकांक्षा थी कि उसने अपना तमाम वक्त इसी में खर्च किया । उसने वहां रहते हुए दो पुस्तकें लिखीं जो आगे चलकर श्रमजीवी आन्दोलन के कार्यकर्ताओं के लिए बड़ी प्रेरणादायक सिद्ध हुईं । वह यहाँ रहकर भी रूस के श्रमजीवी आन्दोलन और राजनीतिक परिवर्तनों का पता रखता था और गुप्त रूप से अपनी कमेटी वालों को हिदायतें देकर आन्दोलन को जीवित रखे हुए था । इसी का परिणाम था कि जब तीन वर्ष बाद वह निर्वासन से लौटे तो उन्हें फिर से कार्य आरम्भ करने में अधिक समय बर्बाद नहीं करना पड़ा । यहीं पर रहकर उन्होंने रूस के श्रमजीवी आन्दोलन को ठीक से चलाने के लिए एक नियमित अखबार निकालने की योजना भी बनाई ।
लेनिन ने जो कानून का अध्ययन किया था वह ' शुसेनिस्क ' में काम आया । वह फुर्सत के समय वहां के किसान , मजदूरों आदि से मिलकर उन्हें मुकदमों तथा अन्य शिकायतों के संबंध में सलाह दिया करते थे । इससे वह लोगों में 'वकील ' के नाम से मशहूर हो गये । इससे अनेक लोगों का बड़ा उपकार हो जाता था और वे सरकारी कर्मचारियों के अन्याय से बच जाते थे ।
लेनिन लन्दन के हाइगेट कब्रिस्तान में कार्ल मार्क्स की कब्र के पास घंटों बैठकर जार शाही का तख्ता पलटने और असीम शक्तिशाली बोलशेविक दल का स्वप्न देखा करता था | अपनी कर्मठता , मनोयोग और नि:स्वार्थभाव से जन - कल्याण के लिए कर्तव्यपालन कर उस स्वप्न को साकार किया । प्रसिद्ध मानवतावादी विचारक रोमारोलां ने लिखा है ----- " लेनिन वर्तमान शताब्दी का सबसे बड़ा कर्मठ और स्वार्थ त्यागी व्यक्ति था । उसने आजीवन घोर परिश्रम किया पर अपने लिए कभी किसी प्रकार के लाभ की इच्छा नहीं की । "
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