' मनुष्य बुराई को तब तक ही ग्रहण किये रहता है जब तक उसे अच्छाई के दर्शन नहीं होते । अन्धकार तभी तक रहता है जब तक प्रकाश नहीं होता । '
कागावा ने समाज सेवा और सुधार के लिए जिस बस्ती को चुना वह थी ----- शिंकावा । उस गन्दी बस्ती में चोर , बदमाश , ठग , उठाईगीर , उचक्के , हत्यारे , वेश्याएं , दलाल , शराबी और जुआरियों की बहुतायत थी ।
उनके साथियों ने कहा --- ' वह स्थान तो किसी भले आदमी के रहने योग्य नहीं है ।
कागावा ने कहा ---- " मैं तो वहीँ रहूँगा और वहां के पथभ्रष्ट लोगों को ठीक रास्ते पर लाने का प्रयत्न करूँगा । संगत से आदमी का बिगाड़ होता है और संगत से सुधार भी । शिंकावा में माना इस समय बुरे लोग रहते हैं । उनके बीच कोई ऐसा आदमी नहीं है जो उन्हें मानवता की परिभाषा उसका मूल्य और उसका प्रकार बतला सके । सब एक जैसी मनोवृति तथा आचरण के लोग रहते हैं और एक दूसरे को प्रेरित व प्रभावित करते हैं । उनके बीच अपना दंभ छोड़कर अच्छे और भले आदमी रहने लगे और अपने आचार विचार का प्रभाव डालने लगें तो बस्ती के बस्ती के बिगड़े लोग सुधरने लगेंगे । कागावा के प्रयास से सारी बस्ती महक उठी ।
कागावा ने समाज सेवा और सुधार के लिए जिस बस्ती को चुना वह थी ----- शिंकावा । उस गन्दी बस्ती में चोर , बदमाश , ठग , उठाईगीर , उचक्के , हत्यारे , वेश्याएं , दलाल , शराबी और जुआरियों की बहुतायत थी ।
उनके साथियों ने कहा --- ' वह स्थान तो किसी भले आदमी के रहने योग्य नहीं है ।
कागावा ने कहा ---- " मैं तो वहीँ रहूँगा और वहां के पथभ्रष्ट लोगों को ठीक रास्ते पर लाने का प्रयत्न करूँगा । संगत से आदमी का बिगाड़ होता है और संगत से सुधार भी । शिंकावा में माना इस समय बुरे लोग रहते हैं । उनके बीच कोई ऐसा आदमी नहीं है जो उन्हें मानवता की परिभाषा उसका मूल्य और उसका प्रकार बतला सके । सब एक जैसी मनोवृति तथा आचरण के लोग रहते हैं और एक दूसरे को प्रेरित व प्रभावित करते हैं । उनके बीच अपना दंभ छोड़कर अच्छे और भले आदमी रहने लगे और अपने आचार विचार का प्रभाव डालने लगें तो बस्ती के बस्ती के बिगड़े लोग सुधरने लगेंगे । कागावा के प्रयास से सारी बस्ती महक उठी ।
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