भारत एक ऐसा देश है जहाँ अनेक धर्मों तथा अनेक संस्कृतियों के अनुयायी रहते हैं । समय - समय पर देश के हर वर्ग ने बढ़ी - चढ़ी कुर्बानी प्रस्तुत की है , चाहे वह सिख हो या पारसी , हिन्दू हो या मुसलमान । देश को जब भी आवश्यकता पड़ी तो सम्प्रदाय और मजहब की दीवारों को तोड़कर हर वर्ग के व्यक्ति ने अविस्मरणीय त्याग एवं बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत किया l
मैडम कामा पारसी क्रान्तिकारी महिला थीं , सामाजिक कार्यों से उन्हें च्युत करने के लिए उन्हें लन्दन भेज दिया गया , बाद में उन्होंने पेरिस को अपना कार्यस्थल चुना । जब वीर सावरकर पेरिस पहुंचे तो वे मैडम कामा के यहाँ ठहरे l मैडम कामा ने माता के सामान सावरकर की सब प्रकार से सेवा की , जिससे उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हुआ l
मैडम कामा पेरिस से ' वंदेमातरम् ' नामक एक पत्र प्रकाशित करती थीं , जिसमे वे इंग्लैंड, अमेरिका , जर्मनी आदि देशों में अंग्रेजों द्वारा भारत के बारे में फैलायी जाने वाली झूठी खबरों का निराकरण किया करती थीं । वे ' होमरूल आन्दोलन ' में सम्मिलित हुईं और कुछ दिन पश्चात् वे सावरकर की क्रान्तिकारी संस्था ' अभिनव भारत ' की सक्रिय सदस्या बन गईं ।
एक बार बर्लिन में आयोजित अखिल जर्मन समाजवादी सम्मेलन में सम्मिलित हुईं । वे भारतीय तिरंगे राष्ट्र ध्वज को भी ले गईं थीं , उसे निकालकर फहराते हुए बोलीं ------- " यह है भारत का स्वतंत्र राष्ट्रीय ध्वज , जो आपके सामने फहरा रहा है । भारतीय देशभक्तों के रक्त से वह पवित्र हो चुका है l अत: मैं उपस्थित सज्जनों से अनुरोध करती हूँ कि आप सब लोग खड़े होकर भारत की इस स्वतंत्र पताका का सम्मान पूर्वक अभिवादन करें । "
मैडम कामा के शब्दों का सदस्यों पर जादू सा असर हुआ और तत्काल सभी लोगों ने खड़े होकर भारतीय ध्वजा की टोप उतार कर वन्दना की । इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब किसी भारतीय ने विदेश में अपने राष्ट्र की स्वतंत्र पताका फहराने का साहस किया ।
मैडम कामा पारसी क्रान्तिकारी महिला थीं , सामाजिक कार्यों से उन्हें च्युत करने के लिए उन्हें लन्दन भेज दिया गया , बाद में उन्होंने पेरिस को अपना कार्यस्थल चुना । जब वीर सावरकर पेरिस पहुंचे तो वे मैडम कामा के यहाँ ठहरे l मैडम कामा ने माता के सामान सावरकर की सब प्रकार से सेवा की , जिससे उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हुआ l
मैडम कामा पेरिस से ' वंदेमातरम् ' नामक एक पत्र प्रकाशित करती थीं , जिसमे वे इंग्लैंड, अमेरिका , जर्मनी आदि देशों में अंग्रेजों द्वारा भारत के बारे में फैलायी जाने वाली झूठी खबरों का निराकरण किया करती थीं । वे ' होमरूल आन्दोलन ' में सम्मिलित हुईं और कुछ दिन पश्चात् वे सावरकर की क्रान्तिकारी संस्था ' अभिनव भारत ' की सक्रिय सदस्या बन गईं ।
एक बार बर्लिन में आयोजित अखिल जर्मन समाजवादी सम्मेलन में सम्मिलित हुईं । वे भारतीय तिरंगे राष्ट्र ध्वज को भी ले गईं थीं , उसे निकालकर फहराते हुए बोलीं ------- " यह है भारत का स्वतंत्र राष्ट्रीय ध्वज , जो आपके सामने फहरा रहा है । भारतीय देशभक्तों के रक्त से वह पवित्र हो चुका है l अत: मैं उपस्थित सज्जनों से अनुरोध करती हूँ कि आप सब लोग खड़े होकर भारत की इस स्वतंत्र पताका का सम्मान पूर्वक अभिवादन करें । "
मैडम कामा के शब्दों का सदस्यों पर जादू सा असर हुआ और तत्काल सभी लोगों ने खड़े होकर भारतीय ध्वजा की टोप उतार कर वन्दना की । इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब किसी भारतीय ने विदेश में अपने राष्ट्र की स्वतंत्र पताका फहराने का साहस किया ।
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