' ह्रदय की शुद्धता , आचरण की पवित्रता , धर्म में आस्था , वार्तालाप में स्पष्टता , उद्देश्य में अडिगता और सबसे बढ़कर देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने की मनोवृति आदि अनेक ऐसे सद्गुण लोकमान्य तिलक में थे कि जो कोई उनके पास आता था वह पूरी तरह प्रभावित हो जाता था । देश सेवा तथा भारतीय जनता के उद्धार को उन्होंने अपने जीवन का एक व्रत मानो बना लिया था । ' लोग कहते थे तिलक तो ' यथा नाम तथा गुण ' हैं । जैसे तिलक सदा मस्तक पर धारण किया जाता है उसी प्रकार तिलक महाराज भी सदा शीर्ष स्थान पर ही रहते हैं ।
उस समय सरकारी स्कूलों में लड़कों को केवल सरकारी क्लर्क बनने की निगाह से पढ़ाया - लिखाया जाता था । लोकमान्य उनको ऐसा भारतीय नागरिक बनाना चाहते थे जो अपने धर्म , सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए भी सचेष्ट रहें । इसके लिए उन्होंने 1880 में पूना में ' न्यू इंग्लिश स्कूल ' की स्थापना की । और इसके चार - पांच वर्षों बाद पूना में ही फर्ग्युसन कॉलेज की नींव डाली और उसे भी एक आदर्श शिक्षा संस्था बना दिया ।
तिलक महाराज नवयुवकों को प्रोत्साहन देकर देश सेवा और राष्ट्रोत्थान की प्रेरणा देने के लिए सदा तैयार रहते थे । वे जानते थे कि यदि आरम्भ से ही सेवा और त्याग की भावनाएं जागृत करके युवकों को सदमार्ग पर प्रेरित कर दिया जायेगा तो वे निश्चय ही अपना जीवन सार्थक बना सकेंगे । वे सत्य के विरुद्ध किसी से भी नहीं डरते थे । जिस समय लोग स्वतंत्रता का नाम लेने का साहस नहीं करते थे उस समय तिलक जी ने उच्च स्वर से यह घोषणा की कि------ ' स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे ।"
आचार - विचार की द्रष्टि से वे पक्के भारतीय थे । उन्होंने अपनी धोती , अंगरखी और पगड़ी को कभी नहीं छोड़ा । विदेशों की बड़ी - बड़ी सभाओं में वे इसी तरह गये और इसी वेश में इंग्लैंड के शासन कर्ताओं से भेंट की ।
बंगाल से आरम्भ होने वाले 19०5 के प्रसिद्ध ' स्वदेशी आन्दोलन ' के बहुत पहले ही उन्होंने स्वदेशी वस्तु व्यवहार का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया था । स्वदेशी के सम्बन्ध में अनेक भजन और गीत सार्वजनिक सभाओं में सुनाई पड़ने लगे थे । उसी जमाने में एक माली ने लोक गीत बनाकर गाया था ------
लाल बाल और पाल कहें यों सुन के ख्याल न भौं तानो l
छोडो सब परदेशी चीजें , चलन स्वदेशी पहचानो l
उस समय सरकारी स्कूलों में लड़कों को केवल सरकारी क्लर्क बनने की निगाह से पढ़ाया - लिखाया जाता था । लोकमान्य उनको ऐसा भारतीय नागरिक बनाना चाहते थे जो अपने धर्म , सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए भी सचेष्ट रहें । इसके लिए उन्होंने 1880 में पूना में ' न्यू इंग्लिश स्कूल ' की स्थापना की । और इसके चार - पांच वर्षों बाद पूना में ही फर्ग्युसन कॉलेज की नींव डाली और उसे भी एक आदर्श शिक्षा संस्था बना दिया ।
तिलक महाराज नवयुवकों को प्रोत्साहन देकर देश सेवा और राष्ट्रोत्थान की प्रेरणा देने के लिए सदा तैयार रहते थे । वे जानते थे कि यदि आरम्भ से ही सेवा और त्याग की भावनाएं जागृत करके युवकों को सदमार्ग पर प्रेरित कर दिया जायेगा तो वे निश्चय ही अपना जीवन सार्थक बना सकेंगे । वे सत्य के विरुद्ध किसी से भी नहीं डरते थे । जिस समय लोग स्वतंत्रता का नाम लेने का साहस नहीं करते थे उस समय तिलक जी ने उच्च स्वर से यह घोषणा की कि------ ' स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे ।"
आचार - विचार की द्रष्टि से वे पक्के भारतीय थे । उन्होंने अपनी धोती , अंगरखी और पगड़ी को कभी नहीं छोड़ा । विदेशों की बड़ी - बड़ी सभाओं में वे इसी तरह गये और इसी वेश में इंग्लैंड के शासन कर्ताओं से भेंट की ।
बंगाल से आरम्भ होने वाले 19०5 के प्रसिद्ध ' स्वदेशी आन्दोलन ' के बहुत पहले ही उन्होंने स्वदेशी वस्तु व्यवहार का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया था । स्वदेशी के सम्बन्ध में अनेक भजन और गीत सार्वजनिक सभाओं में सुनाई पड़ने लगे थे । उसी जमाने में एक माली ने लोक गीत बनाकर गाया था ------
लाल बाल और पाल कहें यों सुन के ख्याल न भौं तानो l
छोडो सब परदेशी चीजें , चलन स्वदेशी पहचानो l
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