लाल बहादुर शास्त्री एक साधारण परिवार के थे । आत्मावलम्बन की शक्ति ही उनके जीवन में द्रढ़ता बनकर विकसित हुई थी । उनका कहना था ---- ' जो स्वावलम्बन और आत्मविश्वास के साथ बढ़ता है , उसकी योग्यता , द्रढ़ता , कर्मठता , साहस और कर्तव्य भावना अदम्य होती है । '
उन्होंने कहा ----- " फूल कहीं भी हो वह खिलेगा ही । बगीचे में हो या जंगल में बिना खिले उसे मुक्ति नहीं । बगीचे का फूल पालतू फूल है , उसकी चिंता उसे स्वयं नहीं रहती । जंगल का फूल इतना चिंता मुक्त नहीं , उसे अपना पोषण आप जुटाना पड़ता है , अपना निखार आप करना पड़ता है । कहते हैं कि इसलिए खिलता भी वह मंद गति से है । सौरभ भी वह धीरे - धीरे बिखेरता है । किन्तु सुगंध उसकी बड़ी बड़ी तीखी होती है । काफी दूर तक वह अपनी मंजिल तय करती है । जंगल का फूल यद्दपि अपने आकार में छोटा होता है और कई बार वह पूरा खिल भी नहीं पाता है तो भी अपनी सुगंध में वह दूसरे फूलों से हल्का नहीं पड़ता बजनी ही होता है । "
यह सिद्धांत मनुष्यों के विकास में भी लागू होता है ।
' आत्म शक्तियों पर जो जितना अधिक विश्वास करता है , वह उतना ही सफल और बड़ा आदमी बनता है । '
उन्होंने कहा ----- " फूल कहीं भी हो वह खिलेगा ही । बगीचे में हो या जंगल में बिना खिले उसे मुक्ति नहीं । बगीचे का फूल पालतू फूल है , उसकी चिंता उसे स्वयं नहीं रहती । जंगल का फूल इतना चिंता मुक्त नहीं , उसे अपना पोषण आप जुटाना पड़ता है , अपना निखार आप करना पड़ता है । कहते हैं कि इसलिए खिलता भी वह मंद गति से है । सौरभ भी वह धीरे - धीरे बिखेरता है । किन्तु सुगंध उसकी बड़ी बड़ी तीखी होती है । काफी दूर तक वह अपनी मंजिल तय करती है । जंगल का फूल यद्दपि अपने आकार में छोटा होता है और कई बार वह पूरा खिल भी नहीं पाता है तो भी अपनी सुगंध में वह दूसरे फूलों से हल्का नहीं पड़ता बजनी ही होता है । "
यह सिद्धांत मनुष्यों के विकास में भी लागू होता है ।
' आत्म शक्तियों पर जो जितना अधिक विश्वास करता है , वह उतना ही सफल और बड़ा आदमी बनता है । '
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