बापू के आश्रम में थे --- जय कृष्ण प्रभुदास भणसाली ---- बच्चे इन्हें ' काका ' कहते थे । तप के नाम पर वे अपने शरीर को यातना देते थे , इतना कठोर जीवन कि कठोरता को भी कंपकंपी छूट जाये । एक दिन बच्चों ने आकर बापू को बताया कि इतनी ठण्ड और कोहरे में काका मुँह सिलवा के कमर तक पानी में खड़े हैं । बापू बच्चों के साथ नदी के किनारे पहुंचे । उन्होंने भणसाली को आवाज दी ---- इस तरफ आ जाओ । धीरे - धीरे पानी को पार करते हुए वे बापू के पास पहुंचे ।
" भणसाली ! क्यों इतनी तकलीफ उठाते हो ? " कहते हुए बापू ने अपनी शाल के अन्दर से एक सूखा कपड़ा निकाल कर उनके शरीर को पोंछने लगे और आहिस्ते से उस तांबे के तार को निकाला जिससे उन्होंने अपना मुंह सिल रखा था । बापू ने उन्हें समझाया ------ " भणसाली ! जिद छोड़ो । तपस्या हठ नहीं जीवन का शोधन है । रात भर पानी की नांद में लेटने , तपती बालू पर पड़े रहने , होठ सिलवा लेने से जीवन का शोधन कैसे होगा ? जिस जीवन का परिष्कार कर सैकड़ों हजारों क्षत - विक्षत जिन्दगियों में प्राण फूंके जा सकते हैं , जो परिष्कृत जीवन नर पशुओं को देव मानव की दीक्षा देने में समर्थ है , उसी को तिल - तिल करके गलाना परमात्मा की दिव्य धरोहर का अपमान नहीं तो और क्या है ?
वे बोल उठे --- ' पर बापू मैं तो शास्त्र विधान के अनुसार तप ------- '
गाँधी जी ने टोका ---- ' गीता के सत्रहवें अध्याय में इस शरीर यातना को अविवेकियों द्वारा किया जाने वाला असुर कर्म कहा है । घर छोडो - जंगल भागो ,कमरे छोड़ो, गुफा ढूंढो । मनीषियों के इसी पलायन धर्म के कारण विधाता के विश्व उद्दान का बंटाधार हुआ है । जिस बगीचे के माली भाग जाएँ तो परिणाम जानते हो ? बगीचे को बनैले पशु रौंदेंगे । हँसते - खिलखिलाते फूलों को कुचले - मसले जाने के लिए विवश होना पड़ेगा । तप के नाम पर युग धर्म से मुख मोड़ने वाले इन पलायनवादियों को आत्म ग्लानि के तुषानल में जन्म - जन्मान्तर तक झुलसना पड़ेगा ।
आज अपने देश की दुर्दशा , उसके जिस्म पर हो रहे सहस्त्रों आघातों का एकमात्र कारण उसके मालियों का पलायनवाद है । '
बापू के स्वर की गंभीरता ने उसे सहमा दिया । गाँधी जी कहने लगे --- योगेश्वर कृष्ण तप की व्याख्या करते हुए कहते हैं -- शरीर का तप है -------- सेवा के लिए श्रम
वाणी का तप है -------- सत्य प्रिय हितकारक वचन
मन का तप है --------- सौम्यता व विचारशीलता
हठ छोड़कर इसे अंगीकार करो, अपने मन की प्रवृतियों को बदलो । '
उस दिन से आरम्भ हुआ भणसाली का यथार्थ तप । हरिजन यंग इन्डिया का सम्पादन हो या आश्रम का कोई भी छोटा - बड़ा काम तन्मयता से करते । 1942 के अगस्त महीने में चिमूर स्थान पर किये गए उनके सत्याग्रह ने सारे देश को चकित कर दिया , स्वयं गाँधी जी कह उठे --- जय कृष्ण प्रभुदास भणसाली ने मेरा सिर दुनिया में ऊँचा कर दिया । युग धर्म निर्वाह के लिए ' कष्ट सहिष्णुता ही तप है । '
" भणसाली ! क्यों इतनी तकलीफ उठाते हो ? " कहते हुए बापू ने अपनी शाल के अन्दर से एक सूखा कपड़ा निकाल कर उनके शरीर को पोंछने लगे और आहिस्ते से उस तांबे के तार को निकाला जिससे उन्होंने अपना मुंह सिल रखा था । बापू ने उन्हें समझाया ------ " भणसाली ! जिद छोड़ो । तपस्या हठ नहीं जीवन का शोधन है । रात भर पानी की नांद में लेटने , तपती बालू पर पड़े रहने , होठ सिलवा लेने से जीवन का शोधन कैसे होगा ? जिस जीवन का परिष्कार कर सैकड़ों हजारों क्षत - विक्षत जिन्दगियों में प्राण फूंके जा सकते हैं , जो परिष्कृत जीवन नर पशुओं को देव मानव की दीक्षा देने में समर्थ है , उसी को तिल - तिल करके गलाना परमात्मा की दिव्य धरोहर का अपमान नहीं तो और क्या है ?
वे बोल उठे --- ' पर बापू मैं तो शास्त्र विधान के अनुसार तप ------- '
गाँधी जी ने टोका ---- ' गीता के सत्रहवें अध्याय में इस शरीर यातना को अविवेकियों द्वारा किया जाने वाला असुर कर्म कहा है । घर छोडो - जंगल भागो ,कमरे छोड़ो, गुफा ढूंढो । मनीषियों के इसी पलायन धर्म के कारण विधाता के विश्व उद्दान का बंटाधार हुआ है । जिस बगीचे के माली भाग जाएँ तो परिणाम जानते हो ? बगीचे को बनैले पशु रौंदेंगे । हँसते - खिलखिलाते फूलों को कुचले - मसले जाने के लिए विवश होना पड़ेगा । तप के नाम पर युग धर्म से मुख मोड़ने वाले इन पलायनवादियों को आत्म ग्लानि के तुषानल में जन्म - जन्मान्तर तक झुलसना पड़ेगा ।
आज अपने देश की दुर्दशा , उसके जिस्म पर हो रहे सहस्त्रों आघातों का एकमात्र कारण उसके मालियों का पलायनवाद है । '
बापू के स्वर की गंभीरता ने उसे सहमा दिया । गाँधी जी कहने लगे --- योगेश्वर कृष्ण तप की व्याख्या करते हुए कहते हैं -- शरीर का तप है -------- सेवा के लिए श्रम
वाणी का तप है -------- सत्य प्रिय हितकारक वचन
मन का तप है --------- सौम्यता व विचारशीलता
हठ छोड़कर इसे अंगीकार करो, अपने मन की प्रवृतियों को बदलो । '
उस दिन से आरम्भ हुआ भणसाली का यथार्थ तप । हरिजन यंग इन्डिया का सम्पादन हो या आश्रम का कोई भी छोटा - बड़ा काम तन्मयता से करते । 1942 के अगस्त महीने में चिमूर स्थान पर किये गए उनके सत्याग्रह ने सारे देश को चकित कर दिया , स्वयं गाँधी जी कह उठे --- जय कृष्ण प्रभुदास भणसाली ने मेरा सिर दुनिया में ऊँचा कर दिया । युग धर्म निर्वाह के लिए ' कष्ट सहिष्णुता ही तप है । '
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