' आलस्य हर प्रकार का बुरा है , पर मानसिक आलस्य सबसे बुरे स्तर का है | जो लोग उचित और अनुचित का भेद नहीं करते , उपयुक्त , अनुपयुक्त की परख करने का कष्ट नहीं उठाते और बुद्धि की वास्तविकता , अवास्तविकता का विश्लेषण करने का बोझ नहीं उठाते ऐसे लोग मानसिक आलसी कहलाते हैं । उन्हें न विवेक का दर्शन होता है न प्रकाश का । ऐसे लोग अज्ञान अंधकार में भटकते हुए अपने जीवन का नाश करते रहते हैं । ।
मानसिक द्रष्टि से आलसी व्यक्ति अपनी मौलिकता , विवेकशीलता , विशेषता एवं श्रेष्ठता खो बैठते हैं । एक प्रकार से वे पड़ोसियों के मानसिक गुलाम बन जाते हैं । आसपास के लोग जैसा कुछ भला - बुरा सोचते , मानते हैं , उसी भेड़िया धंसान में उन्हें भी अपना गुजारा करना पड़ता है l
कहते हैं एक भेड़ जिधर चलती है , उधर ही पीछे वाली भेड़ें भी चलने लगती हैं । आगे वाली भेड़ कुएं में गिरे तो पीछे वाली भी उसका अनुसरण करती हुई उसी खड्ड में गिरती चली जाती है l मानसिक दासता और बौद्धिक आलस्य का यही चिन्ह है ।
यह लक्षण जिस समाज , राष्ट्र या व्यक्ति में पाए जाएँ तो समझना चाहिए कि यह मानसिक दासता के दलदल में फंसकर चिरकाल तक दारुण दुःख सहता अवं दुर्गति की यातना भोगता हुआ पतन की और बढ़ता चला जायेगा ।
मानसिक द्रष्टि से आलसी व्यक्ति अपनी मौलिकता , विवेकशीलता , विशेषता एवं श्रेष्ठता खो बैठते हैं । एक प्रकार से वे पड़ोसियों के मानसिक गुलाम बन जाते हैं । आसपास के लोग जैसा कुछ भला - बुरा सोचते , मानते हैं , उसी भेड़िया धंसान में उन्हें भी अपना गुजारा करना पड़ता है l
कहते हैं एक भेड़ जिधर चलती है , उधर ही पीछे वाली भेड़ें भी चलने लगती हैं । आगे वाली भेड़ कुएं में गिरे तो पीछे वाली भी उसका अनुसरण करती हुई उसी खड्ड में गिरती चली जाती है l मानसिक दासता और बौद्धिक आलस्य का यही चिन्ह है ।
यह लक्षण जिस समाज , राष्ट्र या व्यक्ति में पाए जाएँ तो समझना चाहिए कि यह मानसिक दासता के दलदल में फंसकर चिरकाल तक दारुण दुःख सहता अवं दुर्गति की यातना भोगता हुआ पतन की और बढ़ता चला जायेगा ।
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