आध्यात्मिक मनोविज्ञानी कार्ल जुंग की यह दृढ मान्यता थी कि ---- ' मनुष्य की धर्म , न्याय और नीति में अभिरुचि होनी चाहिए । उसके लिए वह सहज वृति है । यदि इस दिशा में प्रगति न हो पाई तो अंततः मनुष्य टूट जाता है और उसका जीवन निस्सार हो जाता है । '
धन - सम्पति और ज्ञान में वृद्धि के साथ यदि मनुष्य का ह्रदय विकसित हो , चिंतन परिष्कृत हो , उसमे ईमानदारी , उदारता , करुणा, संवेदना सेवा आदि सद्गुण हों , तभी वह ज्ञान और धन सार्थक है अन्यथा पैनी अक्ल और अमीरी विनाश के साधन होंगे । '
धन - सम्पति और ज्ञान में वृद्धि के साथ यदि मनुष्य का ह्रदय विकसित हो , चिंतन परिष्कृत हो , उसमे ईमानदारी , उदारता , करुणा, संवेदना सेवा आदि सद्गुण हों , तभी वह ज्ञान और धन सार्थक है अन्यथा पैनी अक्ल और अमीरी विनाश के साधन होंगे । '
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