मनुष्य को ईश्वर ने इस धरती पर खाली हाथ नहीं भेजा । उसे किसी न किसी विशेषता से संयुक्त करके भेजा है । जिस व्यक्ति ने अपनी उस विशेषता को जान लिया , उसे आत्मसात कर लिया वह प्रतिभा संपन्न , विभूतिवान की श्रेणी में गिना गया । पर उसका विभूतिवान या प्रतिभावान हो जाना ही उसके लिए गौरव की बात नहीं , गौरव की बात तो तब बनती है जब वह उस देन का उपयोग समाज के हित में करता है । उस देन से अपने शरीर और परिवार के लिए उतना ही लेता है जितना न्याय संगत है ।
कुछ मनुष्य कुछ कर दिखने की चिंता करते हैं बाकी अपने जीवन की सारी क्षमताएं छीना - झपटी , खाने - पीने और हा - हा , ही - ही में गँवा देते हैं । जो अपने अन्दर ठहरी उस विशेष कुमुक को काम में लाते हैं वे संसार के जीवन समर में सफल होकर अपने स्थायी स्मारक अवश्य ही छोड़ जाते हैं l
कुछ मनुष्य कुछ कर दिखने की चिंता करते हैं बाकी अपने जीवन की सारी क्षमताएं छीना - झपटी , खाने - पीने और हा - हा , ही - ही में गँवा देते हैं । जो अपने अन्दर ठहरी उस विशेष कुमुक को काम में लाते हैं वे संसार के जीवन समर में सफल होकर अपने स्थायी स्मारक अवश्य ही छोड़ जाते हैं l
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