महात्मा ईसा के विचारों को भुलाकर जब लोग बाह्य रस्मों को ही सब कुछ समझने लगे तब सर्वप्रथम खलील जिब्रान ने ईसाई धर्म में फैली बुराइयों के विरोध में आवाज उठाई । उन्होंने लोगों को उस धर्म से परिचित कराया जिसे ईसा चाहते थे ।
खलील जिब्रान ने बताया ---- " जीसस ने कभी भय की जिन्दगी नहीं जी , न उन्होंने दुःख झेलते हुए कभी शिकायत की ---- वे एक नेता बनकर जिये , धर्म योद्धा के रूप में सूली पर चढ़े , उन्होंने जिस मानवीय साहस और आत्म बल के साथ मृत्यु का वरण किया , उससे उनके हत्यारे और सताने वाले भी दहल गए । ईसा मानव ह्रदय को एक मंदिर , आत्मा को एक वेदी और मस्तिष्क को एक पुजारी बनाने आये थे । यदि मानवता के पास बुद्धि होती तो वह विजय और
प्रसन्नता के गीत गाती । "
खलील जिब्रान ने बताया ---- " जीसस ने कभी भय की जिन्दगी नहीं जी , न उन्होंने दुःख झेलते हुए कभी शिकायत की ---- वे एक नेता बनकर जिये , धर्म योद्धा के रूप में सूली पर चढ़े , उन्होंने जिस मानवीय साहस और आत्म बल के साथ मृत्यु का वरण किया , उससे उनके हत्यारे और सताने वाले भी दहल गए । ईसा मानव ह्रदय को एक मंदिर , आत्मा को एक वेदी और मस्तिष्क को एक पुजारी बनाने आये थे । यदि मानवता के पास बुद्धि होती तो वह विजय और
प्रसन्नता के गीत गाती । "
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