किशोरावस्था में पुलुस्कर दीवाली के दिन पटाखों से खेल रहे थे कि एक पटाखा हाथ में ही छूट गया जिससे उनकी दोनों आँखें बेकार हो गईं l किसी सहपाठी बच्चे ने पूछा ---- " विष्णु ! तेरी दोनों आँखें बेकार हो गईं, अब तू क्या करेगा ? तेरा जीवन तो बड़ा कठिन हो गया । "
विष्णु ने उत्तर दिया ---- " परमात्मा की छाया हमारे साथ है तो हम क्यों निराश हों ? आँखें ही खराब हुई हैं , हाथ , पाँव , नाक , मुंह और तो सब ठीक है । ऐसा क्यों न सोचूं कि जो कुछ शेष है उसका सदुपयोग करके पथ पर बढ़ सकना अभी भी संभव है l "
बारह वर्षों तक बारह - बारह घंटे का कठोर अभ्यास कर उन्होंने संगीत में निपुणता हासिल की । । उनका उद्देश्य था संगीत विद्दालयों का स्वतंत्र इकाई में विकास जिससे यह महान आध्यात्मिक उपलब्धि ( शास्त्रीय संगीत ) जीवित रहे ।
उन्होंने लाहौर में संगीत विद्दालय की घोषणा कर दी , जो कुछ भी अपने पास था वह उस विद्दालय में लगा दिया । दस दिन तक विद्दालय में एक भी छात्र प्रवेश लेने नहीं आया । वहां के जस्टिस चटर्जी इस से दुखी हुए और पूछा ---- " अब क्या होगा । " विष्णु दिगम्बर हंसकर बोले ---- " जज साहब ! हर बड़े काम की शुरुआत कठिनाइयों से होती है , उन्हें जीतना मनुष्य का काम है । हमारा उद्देश्य बड़ा है तो हम घबराएँ क्यों ? मेरी साधना जब तक मेरे साथ है तब तक असफलता की चिंता क्यों करें ? हम तो प्रयत्न करना जानते हैं । पूरा करना या न करना परमात्मा का काम है । उन्होंने कई विशिष्ट आयोजन किये , लोगों ने शास्त्रीय संगीत का महत्व स्वीकार किया । यह विद्दालय 105 संगीत छात्रों को लेकर विकसित हो चला ।
इसके बाद आपने बम्बई में गांधर्व - महाविद्दालय की स्थापना की जिसकी आज सैकड़ों शाखाएं सारे देश में फैली हुई हैं ।
विष्णु ने उत्तर दिया ---- " परमात्मा की छाया हमारे साथ है तो हम क्यों निराश हों ? आँखें ही खराब हुई हैं , हाथ , पाँव , नाक , मुंह और तो सब ठीक है । ऐसा क्यों न सोचूं कि जो कुछ शेष है उसका सदुपयोग करके पथ पर बढ़ सकना अभी भी संभव है l "
बारह वर्षों तक बारह - बारह घंटे का कठोर अभ्यास कर उन्होंने संगीत में निपुणता हासिल की । । उनका उद्देश्य था संगीत विद्दालयों का स्वतंत्र इकाई में विकास जिससे यह महान आध्यात्मिक उपलब्धि ( शास्त्रीय संगीत ) जीवित रहे ।
उन्होंने लाहौर में संगीत विद्दालय की घोषणा कर दी , जो कुछ भी अपने पास था वह उस विद्दालय में लगा दिया । दस दिन तक विद्दालय में एक भी छात्र प्रवेश लेने नहीं आया । वहां के जस्टिस चटर्जी इस से दुखी हुए और पूछा ---- " अब क्या होगा । " विष्णु दिगम्बर हंसकर बोले ---- " जज साहब ! हर बड़े काम की शुरुआत कठिनाइयों से होती है , उन्हें जीतना मनुष्य का काम है । हमारा उद्देश्य बड़ा है तो हम घबराएँ क्यों ? मेरी साधना जब तक मेरे साथ है तब तक असफलता की चिंता क्यों करें ? हम तो प्रयत्न करना जानते हैं । पूरा करना या न करना परमात्मा का काम है । उन्होंने कई विशिष्ट आयोजन किये , लोगों ने शास्त्रीय संगीत का महत्व स्वीकार किया । यह विद्दालय 105 संगीत छात्रों को लेकर विकसित हो चला ।
इसके बाद आपने बम्बई में गांधर्व - महाविद्दालय की स्थापना की जिसकी आज सैकड़ों शाखाएं सारे देश में फैली हुई हैं ।
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