' अपने छोटे से जीवन में उन्होंने देश के एक कोने से दूसरे कोने तक फैले ' पाखण्ड व कुप्रथाओं ' का निराकरण करके वैदिक धर्म का नाद बजाया । ' गोवध ' बंद कराने का प्रयत्न किया । ' बाल विवाह ' की प्रथा का विरोध करके लोगों को ब्रह्मचर्यं का महत्व समझाया । स्थान - स्थान पर गुरुकुल खुलवाकर ' संस्कृत ' शिक्षा का प्रचार किया । ' विधवा विवाह ' की प्रतिष्ठा की , ' शराब - मांस आदि ' का घोर विरोध किया , राजनीतिक स्वतंत्रता पर बल दिया । उन्होंने हर प्रकार से आर्य जाति को फिर से उसके अतीत गौरव पर स्थापित करने का प्रयत्न किया । '
उनके गुरु स्वामी विरजानंद को किसी ऐसे शिष्य की प्रतीक्षा थी जो सत्पात्र हो , जो उनके सिद्धांतों का प्रचार कर संसार में विशेषकर भारत में एक नयी विचार क्रान्ति करने में सफल हो l । स्वामी दयानन्द के रूप में उनकी यह साध पूरी हुई स्वामी दयानन्द के कार्य और वैदिक संस्कृति के पुनरुत्थान अभियान की उपलब्धियां ऐतिहासिक हैं । ।
उस अन्धकार युग में जबकि देश की जनता तरह - तरह की निरर्थक और हानिकारक रूढ़ियों में ग्रस्त थी , जिससे स्वामीजी को पग - पग पर लोगों के विरोध , विध्न - बाधाओं और संघर्ष का सामना करना पड़ा पर वे अपनी अजेय शारीरिक और मानसिक शक्ति , साहस और द्रढ़ता के साथ अपने निश्चित मार्ग पर निरंतर बढ़ते रहे और अंत में अपने लक्ष्य की प्राप्ति में बहुत कुछ सफल हुए l
स्वामी जी ने अपना अनिष्ट करने वालों के प्रति कभी क्रोध नहीं किया , उनका कभी अनहित चिन्तन नहीं किया । । स्वामी जी को इस बात का अनुमान थोड़ी देर में ही हो गया कि रसोइये जगन्नाथ ने उनको दूध में जहर दे दिया है तो उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और सच्ची बात बताने को कहा । उनके आत्मिक प्रभाव से जगन्नाथ काँप गया और अपना अपराध स्वीकार कर लिया l पर स्वामी जी ने उसे बुरा - भला नहीं कहा और न ही उसे दण्ड दिलाया बल्कि उसे अपने पास से कुछ रूपये देकर कहा ---- " अब जहाँ तक बन पड़े तुम अति शीघ्र जोधपुर की सरहद से बाहर निकल जाओ , क्योंकि यदि किसी भी प्रकार इसकी खबर महाराज को लग गई तो तुमको फांसी पर चढ़ाये बिना मानेंगे नहीं । जगन्नाथ उसी क्षण वहां से बहुत दूर चला गया और गुप्त रूप से रहकर अपने प्राणों की रक्षा की l स्वामी जी के जीवन की एक यही घटना उन्हें महा मानव सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है ।
उनके गुरु स्वामी विरजानंद को किसी ऐसे शिष्य की प्रतीक्षा थी जो सत्पात्र हो , जो उनके सिद्धांतों का प्रचार कर संसार में विशेषकर भारत में एक नयी विचार क्रान्ति करने में सफल हो l । स्वामी दयानन्द के रूप में उनकी यह साध पूरी हुई स्वामी दयानन्द के कार्य और वैदिक संस्कृति के पुनरुत्थान अभियान की उपलब्धियां ऐतिहासिक हैं । ।
उस अन्धकार युग में जबकि देश की जनता तरह - तरह की निरर्थक और हानिकारक रूढ़ियों में ग्रस्त थी , जिससे स्वामीजी को पग - पग पर लोगों के विरोध , विध्न - बाधाओं और संघर्ष का सामना करना पड़ा पर वे अपनी अजेय शारीरिक और मानसिक शक्ति , साहस और द्रढ़ता के साथ अपने निश्चित मार्ग पर निरंतर बढ़ते रहे और अंत में अपने लक्ष्य की प्राप्ति में बहुत कुछ सफल हुए l
स्वामी जी ने अपना अनिष्ट करने वालों के प्रति कभी क्रोध नहीं किया , उनका कभी अनहित चिन्तन नहीं किया । । स्वामी जी को इस बात का अनुमान थोड़ी देर में ही हो गया कि रसोइये जगन्नाथ ने उनको दूध में जहर दे दिया है तो उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और सच्ची बात बताने को कहा । उनके आत्मिक प्रभाव से जगन्नाथ काँप गया और अपना अपराध स्वीकार कर लिया l पर स्वामी जी ने उसे बुरा - भला नहीं कहा और न ही उसे दण्ड दिलाया बल्कि उसे अपने पास से कुछ रूपये देकर कहा ---- " अब जहाँ तक बन पड़े तुम अति शीघ्र जोधपुर की सरहद से बाहर निकल जाओ , क्योंकि यदि किसी भी प्रकार इसकी खबर महाराज को लग गई तो तुमको फांसी पर चढ़ाये बिना मानेंगे नहीं । जगन्नाथ उसी क्षण वहां से बहुत दूर चला गया और गुप्त रूप से रहकर अपने प्राणों की रक्षा की l स्वामी जी के जीवन की एक यही घटना उन्हें महा मानव सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है ।
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