' वास्तविक मन से जो अपनी उन्नति चाहते हैं वे अन्य किसी पर या समाज पर निर्भर नहीं रहते , बल्कि अपनी निज की बुद्धि तथा परिश्रम से काम पर जुट जाते हैं और समाज को अपनी और आकर्षित करके , उसे यह सोचने पर विवश कर देते हैं कि यह एक होनहार प्रतिभा है , इसकी उपेक्षा करने का अर्थ है -- अपनी हानि करना । '
श्री रामानुजम का जन्म अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था , उनके पिता की इतनी भी आय नहीं थी कि वे परिवार को दोनों समय भोजन दे सकें l किन्तु तब भी रामानुजम ने अपने परिश्रम के बल पर अपना अभ्युदय करके समाज के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया l
उनका विचार गणित के कुछ ऐसे नये सिद्धांतों का अन्वेषण करना था जिससे गणित जैसा नीरस कहा जाने वाला विषय सरल व रोचक बन जाये l गणित के सिद्धांतों की खोज करने के लिए उनके ह्रदय में बहुत तड़प थी । ।
वे अपने कार्यालय के काम से जरा भी अवकाश मिलते ही अपनी खोज में लग जाते । इस प्रकार कई महीने अधिकारियों की द्रष्टि बचाकर काम करते रहने के बाद एक दिन उनके गणित सम्बन्धी कागज अंग्रेज अधिकारी के हाथ लग गये l वे महोदय स्वयं भी एक अच्छे गणितज्ञ थे l उन्होंने जब रामानुजम के कागजों को पढ़ा तो वह ये देखकर दंग रह गये कि उन कागजों पर जिन सवालों का हल है वे गणित के क्षेत्र में एक नवीन खोज है l वे अंग्रेज अधिकारी गुणग्राही थे उन्होंने गंभीरता पूर्वक विचार करके वे सारे कागज इंग्लैंड के विश्व विख्यात गणितज्ञ प्रो. हार्डी के पास भेज दिए l प्रो. हार्डी ने उन कागजों का अध्ययन कर के मद्रास टेपो ट्रस्ट अधिकारी को लिखा कि किसी प्रकार इस भारतीय युवक रामानुजम को इंग्लैंड भेज दें l
उनके रूढ़िवादी परिजनों ने अनेक शर्त निभाने की प्रतिज्ञा करा के ही उन्हें इंग्लैंड जाने की अनुमति दी l इंगलैंड पहुंचकर रामानुजम प्रो. हार्डी और मोर्डल के संपर्क में रहकर गणित के नये नए सिद्धांतों की खोज से संसार को लाभान्वित करने लगे । । उन्हें इंग्लैंड की रायल सोसाइटी से फेलो ऑफ दी रॉयल सोसाइटी का सम्मान मिला ।
विद्दा तथा योग्यता की पूजा सब जगह होती है l किन्तु तीन वर्ष तक रूढ़िवादी शर्तों ---- सुबह से स्नान कर बिना वस्त्र पहने पूजा करना , फिर इंग्लैंड की ठण्ड में बिना वस्त्र के अपने हाथ से भोजन बनाना आदि कठोर शर्तों को पूरा करते - करते उनका स्वास्थ्य चूर -चूर हो गया और 33 वर्ष की अल्प आयु में ही वह चमत्कारी प्रतिभा सदा के लिए बुझ गई l
श्री रामानुजम का जन्म अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था , उनके पिता की इतनी भी आय नहीं थी कि वे परिवार को दोनों समय भोजन दे सकें l किन्तु तब भी रामानुजम ने अपने परिश्रम के बल पर अपना अभ्युदय करके समाज के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया l
उनका विचार गणित के कुछ ऐसे नये सिद्धांतों का अन्वेषण करना था जिससे गणित जैसा नीरस कहा जाने वाला विषय सरल व रोचक बन जाये l गणित के सिद्धांतों की खोज करने के लिए उनके ह्रदय में बहुत तड़प थी । ।
वे अपने कार्यालय के काम से जरा भी अवकाश मिलते ही अपनी खोज में लग जाते । इस प्रकार कई महीने अधिकारियों की द्रष्टि बचाकर काम करते रहने के बाद एक दिन उनके गणित सम्बन्धी कागज अंग्रेज अधिकारी के हाथ लग गये l वे महोदय स्वयं भी एक अच्छे गणितज्ञ थे l उन्होंने जब रामानुजम के कागजों को पढ़ा तो वह ये देखकर दंग रह गये कि उन कागजों पर जिन सवालों का हल है वे गणित के क्षेत्र में एक नवीन खोज है l वे अंग्रेज अधिकारी गुणग्राही थे उन्होंने गंभीरता पूर्वक विचार करके वे सारे कागज इंग्लैंड के विश्व विख्यात गणितज्ञ प्रो. हार्डी के पास भेज दिए l प्रो. हार्डी ने उन कागजों का अध्ययन कर के मद्रास टेपो ट्रस्ट अधिकारी को लिखा कि किसी प्रकार इस भारतीय युवक रामानुजम को इंग्लैंड भेज दें l
उनके रूढ़िवादी परिजनों ने अनेक शर्त निभाने की प्रतिज्ञा करा के ही उन्हें इंग्लैंड जाने की अनुमति दी l इंगलैंड पहुंचकर रामानुजम प्रो. हार्डी और मोर्डल के संपर्क में रहकर गणित के नये नए सिद्धांतों की खोज से संसार को लाभान्वित करने लगे । । उन्हें इंग्लैंड की रायल सोसाइटी से फेलो ऑफ दी रॉयल सोसाइटी का सम्मान मिला ।
विद्दा तथा योग्यता की पूजा सब जगह होती है l किन्तु तीन वर्ष तक रूढ़िवादी शर्तों ---- सुबह से स्नान कर बिना वस्त्र पहने पूजा करना , फिर इंग्लैंड की ठण्ड में बिना वस्त्र के अपने हाथ से भोजन बनाना आदि कठोर शर्तों को पूरा करते - करते उनका स्वास्थ्य चूर -चूर हो गया और 33 वर्ष की अल्प आयु में ही वह चमत्कारी प्रतिभा सदा के लिए बुझ गई l
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