लाला लाजपतराय एक आत्म - निर्मित व्यक्ति थे , उन्होंने अपने को परिश्रम और पुरुषार्थ की तपस्या में तिल - तिल तपा कर कण-कण गढ़ा था ।
प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव रोपड़ में प्राप्त की । यह स्कूल केवल छठी तक था । उनके पिता का वेतन बहुत कम था , अत: वे हताश हो गए और पुत्र को आगे पढ़ाने में विवशता प्रकट कर दी । किन्तु लाजपतराय हताश नहीं हुए , उन्होंने पिता को कहलाया कि यदि उन्हें लाहौर भेज दिया जाये तो वहां अपने प्रयत्न के आधार पर शिक्षा का प्रबंध कर लेंगे । पिता का ह्रदय गौरव से भर गया , परन्तु आश्चर्य भी हुआ कि छोटा - सा लड़का क्या प्रबंध करेगा ।
लाजपतराय ने प्रारम्भिक परीक्षाएं सभी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी , अत: लाहौर हाई स्कूल में आसानी से प्रवेश मिल गया । आर्थिक समस्या का हल उन्होंने तीन तरीकों से किया ---- मितव्ययता , बच्चों की ट्यूशन और शिक्षा विभाग से छात्रवृति ।
मितव्ययता के सम्बन्ध में उन्होंने यह भी भुला दिया कि सूखी रोटी और दो जोड़ी मोटे कपड़ों के अतिरिक्त जीवन की कोई आवश्यकता भी होती है , उसमे भी घाटा पड़ने पर उपवास और साहस पूर्वक ऋतू का अनुभव ।
ट्यूशन में उन्होंने अपनी योग्यता का अंश देकर बहुत से कमजोर छात्रों को पढ़ने में तेज बना दिया और छात्रवृति के लिए उन्होंने पूरी तैयारी की और प्रतियोगिता में प्रथम स्थान लाकर शिक्षा विभाग से छात्रवृति वसूल की । इस उपलब्धि के लिए बालक लाजपतराय ने इतना परिश्रम किया कि उनके अध्यापक तक कहने लगते थे ---- " बेटा लाजपत ! कभी - कभी घंटा - आध घंटा खेल लिया करो । " उन आदरणीय को क्या पता था कि उस बालक के नन्हे से ह्रदय में एक महापुरुष निर्माण पा रहा है , जिसके साकार होने का यह प्रथम चरण था जो छात्रवृति के लक्ष्य के रूप में उसे पूरा करना ही था ।
प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव रोपड़ में प्राप्त की । यह स्कूल केवल छठी तक था । उनके पिता का वेतन बहुत कम था , अत: वे हताश हो गए और पुत्र को आगे पढ़ाने में विवशता प्रकट कर दी । किन्तु लाजपतराय हताश नहीं हुए , उन्होंने पिता को कहलाया कि यदि उन्हें लाहौर भेज दिया जाये तो वहां अपने प्रयत्न के आधार पर शिक्षा का प्रबंध कर लेंगे । पिता का ह्रदय गौरव से भर गया , परन्तु आश्चर्य भी हुआ कि छोटा - सा लड़का क्या प्रबंध करेगा ।
लाजपतराय ने प्रारम्भिक परीक्षाएं सभी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी , अत: लाहौर हाई स्कूल में आसानी से प्रवेश मिल गया । आर्थिक समस्या का हल उन्होंने तीन तरीकों से किया ---- मितव्ययता , बच्चों की ट्यूशन और शिक्षा विभाग से छात्रवृति ।
मितव्ययता के सम्बन्ध में उन्होंने यह भी भुला दिया कि सूखी रोटी और दो जोड़ी मोटे कपड़ों के अतिरिक्त जीवन की कोई आवश्यकता भी होती है , उसमे भी घाटा पड़ने पर उपवास और साहस पूर्वक ऋतू का अनुभव ।
ट्यूशन में उन्होंने अपनी योग्यता का अंश देकर बहुत से कमजोर छात्रों को पढ़ने में तेज बना दिया और छात्रवृति के लिए उन्होंने पूरी तैयारी की और प्रतियोगिता में प्रथम स्थान लाकर शिक्षा विभाग से छात्रवृति वसूल की । इस उपलब्धि के लिए बालक लाजपतराय ने इतना परिश्रम किया कि उनके अध्यापक तक कहने लगते थे ---- " बेटा लाजपत ! कभी - कभी घंटा - आध घंटा खेल लिया करो । " उन आदरणीय को क्या पता था कि उस बालक के नन्हे से ह्रदय में एक महापुरुष निर्माण पा रहा है , जिसके साकार होने का यह प्रथम चरण था जो छात्रवृति के लक्ष्य के रूप में उसे पूरा करना ही था ।
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