पराधीनता चाहे व्यक्तिगत हो अथवा राष्ट्रीय , उससे मनुष्य के चरित्र का पतन हो जाता है और तरह - तरह के दोष उत्पन्न हो जाते हैं । इसलिए पराधीनता को कवियों ने एक ऐसी ' पिशाचिनी की उपमा दी है जो मनुष्य के ज्ञान , मान , प्राण सबका अपहरण कर लेती है । दूसरों को पराधीन बनाना सबसे बड़ा अन्याय है । इटली के गैरीबाल्डी ( जन्म 1807 ) संसार के उन महापुरुषों में से थे जिनको इस प्रकार की पराधीनता घोर अन्याय जान पड़ती थी और जिन्होंने अपने देश में ही नहीं जहाँ भी सामने अवसर आया अथवा कर्तव्य की पुकार सुनाई दी वहीँ उसके विरुद्ध प्राणपण से संघर्ष किया ।
जर्मनी ने जब फ्रांस पर हमला किया , तब फ़्रांस ने गैरीबाल्डी से सहायता की अपील की । यद्दपि फ़्रांस की सेना से लड़ते हुए उसे अनेक घाव लगे थे , पर उन सब बातों को भूलकर फ़्रांस की मदद को चल दिया । । उसने बहुत वीरता से युद्ध किया जिससे उसका नाम अमर हो गया ।
जर्मनी ने जब फ्रांस पर हमला किया , तब फ़्रांस ने गैरीबाल्डी से सहायता की अपील की । यद्दपि फ़्रांस की सेना से लड़ते हुए उसे अनेक घाव लगे थे , पर उन सब बातों को भूलकर फ़्रांस की मदद को चल दिया । । उसने बहुत वीरता से युद्ध किया जिससे उसका नाम अमर हो गया ।
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