संसार की हर व्यवस्था तर्कपूर्ण है , यह संसार गणित से चलता है | जीवन क्रम को श्रेष्ठ व समुन्नत बनाने के लिए ईश्वर विश्वास की जरुरत है । जिसे ईश्वर पर दृढ़ विश्वास है वह निन्दा - स्तुति की परवाह नहीं करता । समाज ने स्तुति की भी तो क्या हो जायेगा ? समाज अपने द्वारा दिये गए सम्मान के बदले बहुत कुछ यहाँ तक कि सब कुछ छीन लेता है । इससे न तो जीवन का अर्थ मिलता है और न ही तृप्ति मिलती है ।
इसलिए जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते हैं उन्हें न तो प्रशंसा का लोभ होता है और न निन्दा का भय । वह इस सच को गहरे से आत्मसात कर लेते हैं कि भीतर के आनन्द के सामने कुछ भी वरणीय नहीं है ।
इसलिए जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते हैं उन्हें न तो प्रशंसा का लोभ होता है और न निन्दा का भय । वह इस सच को गहरे से आत्मसात कर लेते हैं कि भीतर के आनन्द के सामने कुछ भी वरणीय नहीं है ।
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