देशबन्धु दास के जीवन का एकमात्र लक्ष्य दीन विद्दार्थी , धनाभाव से चिकित्सा कराने में असमर्थ रोगी , मृत पिता का शवदाह करने में अशक्त निर्धन , भूख से व्याकुल आदि विविध रूपों में अभावग्रस्त मानवता को तृप्त करना था |
एक बार की बात है ---- डुमराव राज्य का मुकदमा जीतने पर उन्हें एक दिन में एक लाख रूपये से अधिक मेहनताना मिला । घर पहुँचते - पहुँचते सारा धन देश और समाज की विविध आवश्यकताओं में नियोजित हो गया । गांधीजी ने उनकी यह बात सुन रखी थी । जब वह उनसे मिलने घर गए तो गांधीजी ने दास बाबू से पूछा ---- सुना है आपकी रूपये में पन्द्रह आना कमाई लोग ठग ले जाते हैं । देशबन्धु ने उत्तर दिया -----" बापू ! मैं आस्तिक हूँ । उदास , दुःखी पीड़ित रोगी पड़ा रहे ,और मैं शौक - मौज में धन उडाऊं, यह मेरे लिए संभव नहीं है ।
परमात्मा अनेक रूपों में विपत्ति में पड़ा तड़पता रहे और उसकी सेवा करने के स्थान पर मैं भावी विपत्ति की आशंका से परेशान होऊं और धन के ढेर लगाऊं यह मेरे से संभव नहीं है । भगवन ने मुझे हाथ , पैर , मस्तिष्क क्षमताएं दी हैं । वर्तमान में मैं इनका भरपूर उपयोग देने वाले के लिए कर लेना चाहता हूँ । भविष्य में क्या होगा--- अच्छा ही बुरा, इसके बारे में सोचकर क्यों परेशान होऊं ।
एक बार की बात है ---- डुमराव राज्य का मुकदमा जीतने पर उन्हें एक दिन में एक लाख रूपये से अधिक मेहनताना मिला । घर पहुँचते - पहुँचते सारा धन देश और समाज की विविध आवश्यकताओं में नियोजित हो गया । गांधीजी ने उनकी यह बात सुन रखी थी । जब वह उनसे मिलने घर गए तो गांधीजी ने दास बाबू से पूछा ---- सुना है आपकी रूपये में पन्द्रह आना कमाई लोग ठग ले जाते हैं । देशबन्धु ने उत्तर दिया -----" बापू ! मैं आस्तिक हूँ । उदास , दुःखी पीड़ित रोगी पड़ा रहे ,और मैं शौक - मौज में धन उडाऊं, यह मेरे लिए संभव नहीं है ।
परमात्मा अनेक रूपों में विपत्ति में पड़ा तड़पता रहे और उसकी सेवा करने के स्थान पर मैं भावी विपत्ति की आशंका से परेशान होऊं और धन के ढेर लगाऊं यह मेरे से संभव नहीं है । भगवन ने मुझे हाथ , पैर , मस्तिष्क क्षमताएं दी हैं । वर्तमान में मैं इनका भरपूर उपयोग देने वाले के लिए कर लेना चाहता हूँ । भविष्य में क्या होगा--- अच्छा ही बुरा, इसके बारे में सोचकर क्यों परेशान होऊं ।
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