' दींन दुर्बल वे नहीं जो गरीब अथवा कमजोर हैं वरन वे हैं जो कौड़ियों के मोल अपने अनमोल ईमान को बेचते हैं , प्रलोभनों में फंसकर अपने व्यक्तित्व का वजन गिरते हैं । तात्कालिक लाभ देखने वाले व्यक्ति उस अदूरदर्शी मक्खी की तरह हैं , जो चासनी के लोभ को संवरण न कर पाने से उसके भीतर जा गिरती है और बेमौत मरती है । मृत्यु शरीर की नहीं व्यक्तित्व की भी होती है । गिरावट भी मृत्यु है ।
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