' एक अच्छी रचना सम्पूर्ण समाज को ऊँचा उठाने वाला साधन है । संसार में सत्य , प्रेम , न्याय , कर्तव्य पालन , उच्च आदर्शों को जीवित रखने वाला आकाशदीप । '
श्रीपाद दामोदर सातवलेकर ने ' नैया जीवन ' में अपना एक संस्मरण लिखा है ------- " मैं वैदिक धर्म की और क्यों आकर्षित हुआ ? अपना चित्रकला का धंधा ही नहीं अपना राजनैतिक जीवन भी छोड़कर मैं क्यों एकांत निष्ठां से इस कार्य में लग गया । अपने जीवन में वैदिक धर्म के अभाव की कई घटनाएँ प्रत्यक्ष मैंने देखीं । 1906 में मैंने ' वैदिक राष्ट्रगीत ' नमक पुस्तक अथर्ववेद के बारहवें काण्ड के प्रथम सूक्त पर लिखी । उसमे इन मन्त्रों का अर्थ और स्पष्टीकरण ही था ।
इसकी दो हजार प्रतियाँ बम्बई में छापी गईं । उसमे से दो ढाई सौ का बण्डल ही मेरे पास तक पहुंचा था कि ब्रिटिश सरकार ने उसको जब्त कर लिया । इसका अनुवाद भी इलाहाबाद में छपा था , उसकी भी तीन - चार हजार प्रतियाँ जब्त कर लीं गईं । वेद की एक छोटी सी पुस्तक से सरकार को इतना भय क्यों ? '
इस घटना से इतना तो स्पष्ट हो गया कि वैदिक धर्म यदि जनता में जाग्रत हो , तो ब्रिटिश सरकार का भारत में रहना असंभव हो जाये । मैंने वेद की गहराइयों में उतरने का निश्चय कर लिया । मुझे लगा कि गहरे उतरे बिना उसके क्या किसी के भी रहस्यों से परिचित होना संभव नहीं है । गहरे ज्ञान भण्डार की और मेरी रूचि बढ़ी । '
उन्होंने वैदिक साहित्य सेवा को ही अपना जीवन अर्पित कर दिया ।
श्रीपाद दामोदर सातवलेकर ने ' नैया जीवन ' में अपना एक संस्मरण लिखा है ------- " मैं वैदिक धर्म की और क्यों आकर्षित हुआ ? अपना चित्रकला का धंधा ही नहीं अपना राजनैतिक जीवन भी छोड़कर मैं क्यों एकांत निष्ठां से इस कार्य में लग गया । अपने जीवन में वैदिक धर्म के अभाव की कई घटनाएँ प्रत्यक्ष मैंने देखीं । 1906 में मैंने ' वैदिक राष्ट्रगीत ' नमक पुस्तक अथर्ववेद के बारहवें काण्ड के प्रथम सूक्त पर लिखी । उसमे इन मन्त्रों का अर्थ और स्पष्टीकरण ही था ।
इसकी दो हजार प्रतियाँ बम्बई में छापी गईं । उसमे से दो ढाई सौ का बण्डल ही मेरे पास तक पहुंचा था कि ब्रिटिश सरकार ने उसको जब्त कर लिया । इसका अनुवाद भी इलाहाबाद में छपा था , उसकी भी तीन - चार हजार प्रतियाँ जब्त कर लीं गईं । वेद की एक छोटी सी पुस्तक से सरकार को इतना भय क्यों ? '
इस घटना से इतना तो स्पष्ट हो गया कि वैदिक धर्म यदि जनता में जाग्रत हो , तो ब्रिटिश सरकार का भारत में रहना असंभव हो जाये । मैंने वेद की गहराइयों में उतरने का निश्चय कर लिया । मुझे लगा कि गहरे उतरे बिना उसके क्या किसी के भी रहस्यों से परिचित होना संभव नहीं है । गहरे ज्ञान भण्डार की और मेरी रूचि बढ़ी । '
उन्होंने वैदिक साहित्य सेवा को ही अपना जीवन अर्पित कर दिया ।
No comments:
Post a Comment