हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार -- मनुष्य का चोला बड़े भाग्य से मिलता है । यदि इसका सदुपयोग न किया गया , संसार की सेवा , परोपकार , करुणा, उदारता द्वारा मानव जन्म को सार्थक न बनाया गया तो फिर वही गधे - घोड़े बनकर बोझा ढोना और डंडे खाने की स्थिति को प्राप्त होना पड़ता है । भगवान ने मनुष्य के लिए यही विधान बनाया है कि या तो सत्कर्म करके उत्थान करो या स्वार्थ साधन कर के नीचे गिरो । एक सी स्थिति लगातार शायद ही किसी की रह पाती है ।
संसार में यों तो असंख्य मनुष्य सदा जन्म लेते और मरते रहते हैं पर सफल जीवन उन्ही का कहा जा सकता है जो समाज की , देश की , संसार की कुछ भलाई कर जाएँ ।
संसार में यों तो असंख्य मनुष्य सदा जन्म लेते और मरते रहते हैं पर सफल जीवन उन्ही का कहा जा सकता है जो समाज की , देश की , संसार की कुछ भलाई कर जाएँ ।
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