स्वामी विवेकानन्द ने कहा ----- " हम जिन वस्तुओं को काम में लाते हैं , जो हमारी जीवन यात्रा में सहायक हैं और जो हमारे व्यक्तित्व के ही एक अंग हैं , उनके प्रति क्रूरता हमारी चेतना का स्तर दर्शाती है । दैनिक जीवन में काम में आने वाली वस्तुओं , व्यक्तियों और प्राणियों के प्रति भी मन में संवेदना नहीं है तो विराट अस्तित्व से किसी व्यक्ति का तादात्म्य कैसे जुड़ सकता है ।
अपने आसपास के जगत के प्रति जो संवेदनशील नहीं है , वह परमात्मा के प्रति कैसे खुल सकता है । स्रष्टि के हर कण में परमात्मा है । "
अपने आसपास के जगत के प्रति जो संवेदनशील नहीं है , वह परमात्मा के प्रति कैसे खुल सकता है । स्रष्टि के हर कण में परमात्मा है । "
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