सत्ता का नशा संसार की सौ मदिराओं से भी अधिक होता है । उसकी बेहोशी सँभालने में एकमात्र आध्यात्मिक द्रष्टिकोण ही समर्थ हो सकता है । अन्यथा भौतिक भोग का द्रष्टिकोण रखने वाले असंख्य सत्ताधारी संसार में पानी के बुलबुलों की तरह उठते और मिटते रहें हैं ।
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