हिन्दू महासभा की स्थापना के सम्बन्ध में लाला लाजपतराय ने कहा था ------ " अपने देश के अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति मेरे मन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है । मैं सभी की उन्नति और कल्याण में राष्ट्र का हित देखता हूँ । अपने सम्प्रदाय की दशा सुधार करने के लिए वे जो भी प्रयत्न करते हैं उनसे मेरा कोई विरोध नहीं । भारत की वर्तमान राजनीतिक अवस्था में उन्हें अपने संप्रदाय के हितों की रक्षा करने का पूरा अधिकार है किन्तु इसके साथ शर्त यह है कि वे इसके लिए अभारतीयों के साथ कोई नापाक साठ- गाँठ न करें । अहिंदुओं के सामने हिन्दुओं को , और गैर हिन्दुस्तानियों के मुकाबले हिन्दुस्तानियों के लिए मेरा यही कहना है जो दुर्योधन के विरुद्ध युद्ध का प्रस्ताव लेकर आने वाले शत्रुओं से युधिष्ठिर ने कहा था ----- " पांडव और कौरव आपस में तो एक दूसरे के विरुद्ध पांच और सौ हैं ----- किन्तु किसी तीसरे शत्रु के विरुद्ध हम सब एक सौ पांच हैं । "
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