' सत्य और सत्कर्मों का अवलम्बन करने से मनुष्य की अंतरात्मा में प्रसुप्त शक्तियां स्वत: ही प्रबुद्ध हो उठती हैं । ' पिता की मृत्यु के समय गुरु गोविन्दसिंह की आयु मात्र सात वर्ष थी किन्तु सच्ची धार्मिकता , धर्म व जाति की रक्षा की सच्ची भावना ने उनके भीतर अपूर्व शक्ति व शौर्य भर दिया था । उन्होंने जन शक्ति को संगठित किया और कहा कि यदि अपने उद्देश्य के प्रति हम सब निष्ठावान रहे तो निश्चय ही आततायी को परास्त कर सकेंगे ।
संगठन बनाने बाद उन्होंने सैकड़ों विद्वानों को नियुक्त किया । हिंदी , संस्कृत व फारसी अनेक भाषाएँ स्वयं सीखीं और जनता को भी प्रेरित किया । उन्होंने जनता में उच्च आदर्श जगाने के लिए जगह - जगह भगवान राम , कृष्ण और अन्य महापुरुषों के चरित्र की व्याख्या करते हुए जनता को वैसा बनने की प्रेरणा दी । जनता में चंद्रगुप्त , विक्रमादित्य , समुद्रगुप्त , अशोक महान जैसे राजाओं के इतिहास का प्रचार किया जिससे जनता अपने गौरव का भान हो सके ।
संगठन बनाने बाद उन्होंने सैकड़ों विद्वानों को नियुक्त किया । हिंदी , संस्कृत व फारसी अनेक भाषाएँ स्वयं सीखीं और जनता को भी प्रेरित किया । उन्होंने जनता में उच्च आदर्श जगाने के लिए जगह - जगह भगवान राम , कृष्ण और अन्य महापुरुषों के चरित्र की व्याख्या करते हुए जनता को वैसा बनने की प्रेरणा दी । जनता में चंद्रगुप्त , विक्रमादित्य , समुद्रगुप्त , अशोक महान जैसे राजाओं के इतिहास का प्रचार किया जिससे जनता अपने गौरव का भान हो सके ।
No comments:
Post a Comment