परशुराम जी जन कल्याण के लिए ज्ञान और विग्रह दोनों को ही आवश्यक मानते थे l उनका कहना था कि नम्रता और ज्ञान से सज्जनों को और प्रतिरोध तथा दण्ड से दुष्टों को जीता जा सकता है l
उनका कहना था कि क्रोध वह वर्जित ( बुरा ) है जो स्वार्थ या अहंकार की रक्षा के लिए किया जाये l अन्याय के विरुद्ध क्रुद्ध होना मानवता का चिन्ह है l
उनके विचारों और कार्यों में हिंसा और अहिंसा का अद्भुत समन्वय है l ऋषि होते हुए भी उन्होंने आवश्यकता पड़ने पर काँटे से काँटा निकालने, विष से विष मारने की निति के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए सशस्त्र अभियान आरम्भ किया l उनका कहना था ---- अनीति ही हिंसा है l उसका प्रतिकार करने के लिए जब अहिंसा समर्थ न हो तो हिंसा भी अपनाई जा सकती है l
उनका कहना था कि क्रोध वह वर्जित ( बुरा ) है जो स्वार्थ या अहंकार की रक्षा के लिए किया जाये l अन्याय के विरुद्ध क्रुद्ध होना मानवता का चिन्ह है l
उनके विचारों और कार्यों में हिंसा और अहिंसा का अद्भुत समन्वय है l ऋषि होते हुए भी उन्होंने आवश्यकता पड़ने पर काँटे से काँटा निकालने, विष से विष मारने की निति के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए सशस्त्र अभियान आरम्भ किया l उनका कहना था ---- अनीति ही हिंसा है l उसका प्रतिकार करने के लिए जब अहिंसा समर्थ न हो तो हिंसा भी अपनाई जा सकती है l
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