' मनोयोग और श्रमशीलता के बल पर अर्जित आत्मविश्वास की नींव पर खड़ा उनका व्यक्तित्व आगे भी महानता के मार्ग पर लोगों को प्रेरित करता रहेगा l
1913 में बिहार में भयंकर बाढ़ आई , उस समय राजेन्द्र बाबू वकालत छोड़कर संगी - साथियों के साथ बाढ़ पीड़ितों की सेवा में लग गए , रात को वे किसी रेलवे लाइन या स्टेशन पर ही सो जाते थे l 1934 में जब उत्तरी बिहार में विनाशकारी भूकम्प आया तो वे तन - मन -धन से भूकम्प - पीड़ितों की सेवा में लग गए l उस समय उन्हें किसी कार्य से दरभंगा जाना पड़ा , वहां से लौटते में ट्रेन सोनपुर स्टेशन पर रुकी , भयंकर गर्मी थी लोग पानी - पानी चिल्ला रहे थे l राजेन्द्र बाबू एक क्षण में डिब्बे से उतर गए और एक हाथ में बाल्टी और दूसरे हाथ में लोटा लिए दौड़ - दौड़कर लोगों को पानी पिला रहे थे l
उनकी स्मरण शक्ति आश्चर्यजनक थी l कांग्रेस कार्य कारिणी की बैठक में एक आवश्यक प्रस्ताव पारित होना था , लेकिन उससे संबंधित रिपोर्ट नहीं मिल रही थी l सभी प्रधान सदस्य बड़े परेशान थे l राजेन्द्र बाबू वरिष्ठ नेताओं पं. नेहरु , आचार्य कृपलानी और मौलाना आजाद आदि नेताओं के साथ चर्चा कर रहे थे l जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा ' हाँ ' वह रिपोर्ट मैं पढ़ चुका हूँ और आवश्यक हो तो उसे बोलकर पुन: नोट करा सकता हूँ l लोगों को विश्वास न हुआ कि इतनी लम्बी रिपोर्ट एक बार पढ़ने के पश्चात् ज्यों की त्यों लिखाई जा सकती है l राजेन्द्र बबू सौ से भी अधिक पेज लिखा चुके तब वह रिपोर्ट मिल गई l कौतूहलवश लोगों ने मिलान किया तो कहीं भी अंतर नहीं मिला l लोग आश्चर्य चकित रह गए l
1913 में बिहार में भयंकर बाढ़ आई , उस समय राजेन्द्र बाबू वकालत छोड़कर संगी - साथियों के साथ बाढ़ पीड़ितों की सेवा में लग गए , रात को वे किसी रेलवे लाइन या स्टेशन पर ही सो जाते थे l 1934 में जब उत्तरी बिहार में विनाशकारी भूकम्प आया तो वे तन - मन -धन से भूकम्प - पीड़ितों की सेवा में लग गए l उस समय उन्हें किसी कार्य से दरभंगा जाना पड़ा , वहां से लौटते में ट्रेन सोनपुर स्टेशन पर रुकी , भयंकर गर्मी थी लोग पानी - पानी चिल्ला रहे थे l राजेन्द्र बाबू एक क्षण में डिब्बे से उतर गए और एक हाथ में बाल्टी और दूसरे हाथ में लोटा लिए दौड़ - दौड़कर लोगों को पानी पिला रहे थे l
उनकी स्मरण शक्ति आश्चर्यजनक थी l कांग्रेस कार्य कारिणी की बैठक में एक आवश्यक प्रस्ताव पारित होना था , लेकिन उससे संबंधित रिपोर्ट नहीं मिल रही थी l सभी प्रधान सदस्य बड़े परेशान थे l राजेन्द्र बाबू वरिष्ठ नेताओं पं. नेहरु , आचार्य कृपलानी और मौलाना आजाद आदि नेताओं के साथ चर्चा कर रहे थे l जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा ' हाँ ' वह रिपोर्ट मैं पढ़ चुका हूँ और आवश्यक हो तो उसे बोलकर पुन: नोट करा सकता हूँ l लोगों को विश्वास न हुआ कि इतनी लम्बी रिपोर्ट एक बार पढ़ने के पश्चात् ज्यों की त्यों लिखाई जा सकती है l राजेन्द्र बबू सौ से भी अधिक पेज लिखा चुके तब वह रिपोर्ट मिल गई l कौतूहलवश लोगों ने मिलान किया तो कहीं भी अंतर नहीं मिला l लोग आश्चर्य चकित रह गए l
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