' मनुष्य शरीर होने के नाते गलतियाँ सबसे होती हैं , जो उन्हें छुपाते हैं वे गिरते चले जाते हैं पर जो बुराइयों को , अपनी भूल को स्वीकार करते हैं उनकी आत्महीनता तिरोहित हो जाती है l भूलों की स्वीकृति ही व्यक्ति को इतना ऊँचा उठा देती है कि व्यक्ति अपने जीवन में सामान्य स्तर से बहुत अधिक प्रगति कर पाता है l '
प्रसिद्ध विचारक रूसो ने अपनी आत्मकथा में लिखा है ---- " वही आत्मकथा श्रेष्ठ है जिसमे व्यक्ति ने अपने जीवन में की गईं भूलों को स्पष्टत: स्वीकार किया हो l " महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा में अपनी भूलों का स्पष्ट विवेचन किया है l गाँधी ने जब अपनी भूलों को पहचाना , इनके लिए पश्चाताप किया तो वे धीरे - धीरे अपने सामान्य स्तर से ऊपर उठते गए और ' महात्मा ' कहलाये l
भूल का भान होने पर उसे सुधारने का एक तरीका है --- प्रायश्चित l ऐसा करने से मन का अपराध बोध नष्ट होता है l प्रायश्चित करने का सीधा अर्थ है ---- अपने दोषों को खुले मन से स्वीकार करना , अपनी गलतियों के लिए पश्चाताप करना और भविष्य में उन्हें न दोहराने और उनसे स्वयं को दूर रखने का प्रयास करना l
प्रसिद्ध विचारक रूसो ने अपनी आत्मकथा में लिखा है ---- " वही आत्मकथा श्रेष्ठ है जिसमे व्यक्ति ने अपने जीवन में की गईं भूलों को स्पष्टत: स्वीकार किया हो l " महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा में अपनी भूलों का स्पष्ट विवेचन किया है l गाँधी ने जब अपनी भूलों को पहचाना , इनके लिए पश्चाताप किया तो वे धीरे - धीरे अपने सामान्य स्तर से ऊपर उठते गए और ' महात्मा ' कहलाये l
भूल का भान होने पर उसे सुधारने का एक तरीका है --- प्रायश्चित l ऐसा करने से मन का अपराध बोध नष्ट होता है l प्रायश्चित करने का सीधा अर्थ है ---- अपने दोषों को खुले मन से स्वीकार करना , अपनी गलतियों के लिए पश्चाताप करना और भविष्य में उन्हें न दोहराने और उनसे स्वयं को दूर रखने का प्रयास करना l
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