मनुष्यों की प्रकृति को बदलना असंभव जैसा कार्य है l ' मानव जीवन की प्रकृति में रूपांतरण की प्रक्रिया ' संसार की सबसे विरल घटना हैं l यदि ऐसा होता है तो यह सबसे बड़ा चमत्कार है l
दोस्तोवस्की ने अपने संस्मरण में लिखा है ----- बात उन दिनों की है जब वे जारशाही के विरुद्ध क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न थे , एक दिन पकड़ लिए गए l दस और साथी थे , सभी को मृत्यु दंड सुनाया गया l तिथि तय हुई उस दिन प्रात: छह बजे सभी को गोली मारी जानी थी l सारी तैयारियां हो गई l कब्रें खुद गईं , ताबूत निर्मित हो गए l मानसिक रूप नसे वे मर चुके थे बस , शारीरिक मौत बाकी थी l नियत समय पर सब एक पंक्ति में खड़े थे , तभी छह का घंटा बजा l सैनिक अपनी बन्दूक का घोड़ा दबाते , एक घुड़सवार आ पहुंचा उसने सन्देश सुनाया कि मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में बदल दिया l
लेकिन तब तक उनमे से एक आदमी गिर चुका था , यह सोचकर कि बस अब मरे , छह बज चुके l उसे बताया गया कि सजा आजीवन कारावास में बदल दी गई है l इसे सुनते ही कुछ पल बाद वह उठ खड़ा हुआ और सबके साथ कारागृह चला गया l
दोस्तोवस्की लिखते हैं कि इसके बाद वह कई वर्षों तक जिन्दा रहा लेकिन अब वह पहले वाला आदमी न रहा , पूछने पर बोलता --- वह अमुक तिथि को प्रात: छह बजे मर चुका है l न कोई आसक्ति रही , न इच्छा , न लगाव l निस्पृह योगी की तरह प्रतीत होता l
जिनके अन्दर सचमुच में विरक्ति पैदा होती है , उन्हें कहीं अन्यत्र नहीं जाना पड़ता l वे कीचड़ में कमल की तरह होते हैं l संसार की माया उनका स्पर्श तक नहीं कर पाती l
दोस्तोवस्की ने अपने संस्मरण में लिखा है ----- बात उन दिनों की है जब वे जारशाही के विरुद्ध क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न थे , एक दिन पकड़ लिए गए l दस और साथी थे , सभी को मृत्यु दंड सुनाया गया l तिथि तय हुई उस दिन प्रात: छह बजे सभी को गोली मारी जानी थी l सारी तैयारियां हो गई l कब्रें खुद गईं , ताबूत निर्मित हो गए l मानसिक रूप नसे वे मर चुके थे बस , शारीरिक मौत बाकी थी l नियत समय पर सब एक पंक्ति में खड़े थे , तभी छह का घंटा बजा l सैनिक अपनी बन्दूक का घोड़ा दबाते , एक घुड़सवार आ पहुंचा उसने सन्देश सुनाया कि मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में बदल दिया l
लेकिन तब तक उनमे से एक आदमी गिर चुका था , यह सोचकर कि बस अब मरे , छह बज चुके l उसे बताया गया कि सजा आजीवन कारावास में बदल दी गई है l इसे सुनते ही कुछ पल बाद वह उठ खड़ा हुआ और सबके साथ कारागृह चला गया l
दोस्तोवस्की लिखते हैं कि इसके बाद वह कई वर्षों तक जिन्दा रहा लेकिन अब वह पहले वाला आदमी न रहा , पूछने पर बोलता --- वह अमुक तिथि को प्रात: छह बजे मर चुका है l न कोई आसक्ति रही , न इच्छा , न लगाव l निस्पृह योगी की तरह प्रतीत होता l
जिनके अन्दर सचमुच में विरक्ति पैदा होती है , उन्हें कहीं अन्यत्र नहीं जाना पड़ता l वे कीचड़ में कमल की तरह होते हैं l संसार की माया उनका स्पर्श तक नहीं कर पाती l
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