' जब तक शक्ति - मन्तों की भुजाओं में बल , वाणी में प्रभाव और विस्तार पर नियंत्रण रहता है , सभी उसे नमन करते हैं , उसके अत्याचार को वीरता , अनीति को चातुर्य और शोषण को आवश्यकता मानते रहते हैं l किन्तु ज्यों ही उनकी वह विशेषताएं समय पाकर क्षीण हो जाती हैं त्यों ही लोगों के मन और द्रष्टिकोण बदल जाते हैं l उनके गुण नीचे पद जाते हैं , उनके उपकार यदि कोई होते हैं तो दब जाते हैं और सारे दोष उभर आते हैं l लोग निर्णायक की तरह उसके जीवन तथा कृत्यों का लेखा - जोखा करने लगते हैं और उससे भी अधिक विपरीत हो जाते हैं , जितने कि अनुकूल थे l '
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