सामान्यत: वाणी को विराम देना मौन कहलाता है , परन्तु सार्थक मौन उसे कहते हैं , जब मन में सद्चिन्तन होता रहे l यों ही जिह्वा को बंद रखकर मन में ईर्ष्या- द्वेष का बीज बोते रहने को मौन नहीं कहा जाता l यह तो और भी खतरनाक एवं हानिकारक सिद्ध हो सकता है l मौन के साथ श्रेष्ठ चिन्तन , ईश्वर स्मरण आवश्यक है , तभी मौन की सार्थकता है l
प्रकृति का हर घटक , इसका प्रत्येक जीव मौन रहकर अपने कर्तव्य - कर्म में संलग्न है l अपनी आंतरिक उर्जा के क्षरण को रोकने हेतु मनुष्य के लिए कुछ समय मौन रहना जरुरी है l
अरुणाचलम के महर्षि रमण सदैव मौन रहते थे l उनका मौन उपदेश आत्मा की गहराई में उतर जाता था l बिना बोले वह हर एक की जिज्ञासा को शांत करते और प्रत्येक को अपनी समस्या का समाधान मिल जाता था l
इसी मौन की शक्ति से आचार्य विष्णु गुप्त के भीतर चाणक्य ने जन्म लिया जिसके परिणाम स्वरुप बृहत भारत का उदय हुआ l महात्मा गाँधी के मौन का प्रभाव इतना विलक्षण और अद्भुत था जिसने भारत को सदियों की गुलामी से आजादी दिलाई l
मौन से आत्मशक्ति का उदय होता है , अत: श्रेष्ठ और सार्थक कार्य के लिए मौन को एक व्रत मानकर अपनाना चाहिए l
प्रकृति का हर घटक , इसका प्रत्येक जीव मौन रहकर अपने कर्तव्य - कर्म में संलग्न है l अपनी आंतरिक उर्जा के क्षरण को रोकने हेतु मनुष्य के लिए कुछ समय मौन रहना जरुरी है l
अरुणाचलम के महर्षि रमण सदैव मौन रहते थे l उनका मौन उपदेश आत्मा की गहराई में उतर जाता था l बिना बोले वह हर एक की जिज्ञासा को शांत करते और प्रत्येक को अपनी समस्या का समाधान मिल जाता था l
इसी मौन की शक्ति से आचार्य विष्णु गुप्त के भीतर चाणक्य ने जन्म लिया जिसके परिणाम स्वरुप बृहत भारत का उदय हुआ l महात्मा गाँधी के मौन का प्रभाव इतना विलक्षण और अद्भुत था जिसने भारत को सदियों की गुलामी से आजादी दिलाई l
मौन से आत्मशक्ति का उदय होता है , अत: श्रेष्ठ और सार्थक कार्य के लिए मौन को एक व्रत मानकर अपनाना चाहिए l
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