' अन्याय और पराधीनता के विरुद्ध आक्रोश तो हर व्यक्ति के मन में होता है , उससे मुक्ति पाने के लिए छटपटाहट भी प्रत्येक ह्रदय में होती है पर सबको किसी एक सार्वजनिक हित के लिए सूत्रबद्ध करके , एक माला के रूप में पिरोने , उनका नेतृत्व करने का साहस विरले ही जुटा पाते हैं l '
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