कृपणता एक ऐसी बुद्धिहीनता है कि व्यक्ति सारी सुविधाएँ होते हुए भी स्वयं क्षुद्रता के साथ जीता है और साथ ही किसी अन्य का भी कोई लाभ नहीं कर पाता , संसाधनों के होते हुए भी कृपण व्यक्ति अभाव के मार्ग का चयन करता है l कृपणता एक ऐसी मानसिकता है जो धन का संग्रह तो करवाती है , लेकिन उसका उपयोग करना नहीं सिखाती l
इस सम्बन्ध में एक कथा है ---- एक गाँव में एक वृद्ध महिला थी जो अपने छोटे से परिवार के साथ रहती थी l उसके पास इतना खेत था कि एक वर्ष की फसल तैयार हो जाती थी l एक बार उसने धान का चावल करवाया तो ज्ञात हुआ कि वर्ष के 365 दिनों में से 364 दिन का ही चावल है , एक दिन के लिए चावल कम पड़ रहा है l उसे बड़ी चिंता हो गई कि इस एक दिन की कमी कैसे पूरी करे l बहुत सोच कर उसने तय किया कि आज पहले दिन भूसी खा लें , ताकि शेष 364 दिन सुख पूर्वक कट जाएँ l यह सोचकर वह भूसी खाकर , पानी पीकर सो गई l वृद्ध महिला के पेट में भूसी इतनी फूल गई कि वह पचा न सकी और वहीँ मर गई l
संग्रहकर्ता की सोच बहुत संकीर्ण होती है लेकिन जिन्हें ईश्वर पर विश्वास है वे उदार बनकर जीते हैं l जो कुछ अपने पास है उसे जरुरतमंदों को देना उदारता है l उदार रहने पर व्यक्ति को आंतरिक संतोष प्राप्त होता है और वह बाहरी सम्पदा से ओत-प्रोत रहता है l
इस सम्बन्ध में एक कथा है ---- एक गाँव में एक वृद्ध महिला थी जो अपने छोटे से परिवार के साथ रहती थी l उसके पास इतना खेत था कि एक वर्ष की फसल तैयार हो जाती थी l एक बार उसने धान का चावल करवाया तो ज्ञात हुआ कि वर्ष के 365 दिनों में से 364 दिन का ही चावल है , एक दिन के लिए चावल कम पड़ रहा है l उसे बड़ी चिंता हो गई कि इस एक दिन की कमी कैसे पूरी करे l बहुत सोच कर उसने तय किया कि आज पहले दिन भूसी खा लें , ताकि शेष 364 दिन सुख पूर्वक कट जाएँ l यह सोचकर वह भूसी खाकर , पानी पीकर सो गई l वृद्ध महिला के पेट में भूसी इतनी फूल गई कि वह पचा न सकी और वहीँ मर गई l
संग्रहकर्ता की सोच बहुत संकीर्ण होती है लेकिन जिन्हें ईश्वर पर विश्वास है वे उदार बनकर जीते हैं l जो कुछ अपने पास है उसे जरुरतमंदों को देना उदारता है l उदार रहने पर व्यक्ति को आंतरिक संतोष प्राप्त होता है और वह बाहरी सम्पदा से ओत-प्रोत रहता है l
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