आचार्य शंकर एक गाँव में शिव मंदिर में ठहरे थे l उस गाँव के एक वृद्ध सज्जन उनसे मिले आये l आचार्य ने उनकी ओर देखा --- झुकी हुई कमर , दंतविहीन मुख , शरीर भी अति कमजोर , फिर भी उन्होंने अपने कांपते हाथों में एक पुस्तक पकड़ी हुई थी l उसने कहा --- ' आचार्य 1 आप परम विद्वान हैं , मुझे व्याकरण का ज्ञान दें l " आचार्य ने कहा --- ' " इस आयु में सीखने की इच्छा प्रशंसनीय है l परन्तु यदि आपको ज्ञान पाना है ---- ' वह वृद्ध कहने लगा ---- " मैं व्याकरण सीखूंगा , फिर शास्त्रों का अध्ययन करूँगा l पंडित , फिर महा पंडित बनूँगा l शास्त्रार्थ में विजेता होने पर मेरा सम्मान होगा l लोग मुझे तर्क शिरोमणि , ज्ञानी वृद्ध , महा महोपाध्याय कहेंगे l '
इस कमजोर , कांपते हुए वृद्ध की मनोदशा पर आचार्य को करुणा हो आई , साथ ही उनमे रोष भी उभरा l उन्होंने कहा --- " इतनी आयु होने पर भी तुम्हारी महत्वाकांक्षा , तृष्णा न छूटी l ज्ञान शब्दों में नहीं , अहंकार के पोषण में नहीं बल्कि अहंकार के विनाश में है l काल ने तुम्हारी आयु को समाप्त कर दिया , अब मरण समीप आने पर यह व्याकरण काम नहीं आएगा l अब तुम गोविन्द का भजन करो l भक्ति से ही अहंकार का विनाश होगा l "
इस कमजोर , कांपते हुए वृद्ध की मनोदशा पर आचार्य को करुणा हो आई , साथ ही उनमे रोष भी उभरा l उन्होंने कहा --- " इतनी आयु होने पर भी तुम्हारी महत्वाकांक्षा , तृष्णा न छूटी l ज्ञान शब्दों में नहीं , अहंकार के पोषण में नहीं बल्कि अहंकार के विनाश में है l काल ने तुम्हारी आयु को समाप्त कर दिया , अब मरण समीप आने पर यह व्याकरण काम नहीं आएगा l अब तुम गोविन्द का भजन करो l भक्ति से ही अहंकार का विनाश होगा l "
No comments:
Post a Comment