'जिनके हाथी और घोड़े भी स्वाभिमानी और स्वाधीनता के भक्त थे , उन महाराणा प्रताप को भला कौन और कैसे झुका पायेगा ?
शहंशाह अकबर ने मेवाड़ के महाराणा को सन्देश भिजवाया --- ' यदि मेवाड़ के महाराणा शहंशाह अकबर के सामने झुकते हैं , तो वे आधे हिन्दुस्तान के हकदार होंगे , उन्हें बादशाह की बराबरी का दर्जा मिलेगा l ' ' महाराणा प्रताप का कहना था ---- ' उन्हें स्वतंत्रता के साथ कोई समझौता स्वीकार नहीं है l "
हल्दीघाटी में जंग चल रही थी , मेवाड़ से आये एक मुगल सिपाही ने खबर दी कि महाराणा के
' रामप्रसाद ' नामक हाथी ने अकेले ही शाही सेना के 13 जंगी हाथियों को मार गिराया , वह जिधर से भी गुजर जाता है , मुगल फौज में भगदड़ मच जाती है l अकबर ने इस जंग में महाराणा और उनके हाथी ' रामप्रसाद ' व घोड़े ' चेतक ' को जिन्दा पकड़ने की अपनी तीव्र इच्छा जाहिर की l
इस पर अल्बदायुनी ने कहा ---- ' हुजुर ! महाराणा और उनका घोडा चेतक तो जैसे हवा हैं , उन्हें कैद करना नामुमकिन है l एक टांग टूटने के बावजूद चेतक ने उन्हें 26 गज चौड़ा नाला पार कराया और बाद में वह वहीँ मर गया l उनके हाथी रामप्रसाद को पकड़ने के लिए सात बड़े हाथियों का घेरा बनाया , उस पर चौदह महावतों को बैठाया , तब कहीं जाकर उसे पकड़ने में कामयाबी मिली l शहंशाह अकबर ने स्वयं बाहर जाकर उस हाथी को देखा और देखते रह गए l उन्होंने कहा --- 'ऐसा एक भी हाथी मुगल फौज में नहीं है , इसकी अच्छी तरह देखभाल करो , इसे हम अपने लिए रखेंगे l
उन्होंने ' रामप्रसाद ' का नाम ' पीरप्रसाद ' रख दिया l अकबर की आज्ञा पाकर ढेरों मुगल सैनिक महागज रामप्रसाद की सेवा में लग गए l उसके सामने गन्ने का ढेर लगाया गया , पीने का पानी रखा गया लेकिन वह हाथी भी महाराणा की भांति स्वाधीनता का भक्त था , उसे मुगलों की आधीनता स्वीकार न थी महाराणा उसकी यादों में बसे थे l उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिनों तक न तो मुगलों का दिया गन्ना खाया और न पानी पिया l बस , वहीँ शहीद हो गया l यह देखकर अकबर और उसकी फौज के सिपाही यह सोचने पर मजबूर हो गए कि जिसके हाथी को हम सब मिलकर नहीं झुका पाए , उस महाराणा प्रताप को भला कौन , और कैसे झुका पायेगा ?
महाराणा प्रताप शूरवीर और धैर्यवान थे , उनका भाल कभी झुका नहीं l उनकी कीर्ति अखंड है l
इस घटना को घटित हुए सदियाँ बीत गईं l कहते हैं ----- अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन जब भारत आने की योजना बना रहे थे , तब उन्होंने अपनी माँ पूछा --- ' हिंदुस्तान से उनके लिए क्या लायें ? " तब उनकी माँ कहा ---- " उस महान देश की वीरभूमि हल्दीघाटी से एक मुट्ठी मिटटी लाना , जहाँ राजा ने आधे हिंदुस्तान के बजाय अपनी मातृभूमि को चुना l " दुर्भाग्य लिंकन का यह दौरा रद्द गया l ' बुक ऑफ प्रेसिडेंट यू. एस. ए. ' में इस सच को पढ़ा जा सकता है l
शहंशाह अकबर ने मेवाड़ के महाराणा को सन्देश भिजवाया --- ' यदि मेवाड़ के महाराणा शहंशाह अकबर के सामने झुकते हैं , तो वे आधे हिन्दुस्तान के हकदार होंगे , उन्हें बादशाह की बराबरी का दर्जा मिलेगा l ' ' महाराणा प्रताप का कहना था ---- ' उन्हें स्वतंत्रता के साथ कोई समझौता स्वीकार नहीं है l "
हल्दीघाटी में जंग चल रही थी , मेवाड़ से आये एक मुगल सिपाही ने खबर दी कि महाराणा के
' रामप्रसाद ' नामक हाथी ने अकेले ही शाही सेना के 13 जंगी हाथियों को मार गिराया , वह जिधर से भी गुजर जाता है , मुगल फौज में भगदड़ मच जाती है l अकबर ने इस जंग में महाराणा और उनके हाथी ' रामप्रसाद ' व घोड़े ' चेतक ' को जिन्दा पकड़ने की अपनी तीव्र इच्छा जाहिर की l
इस पर अल्बदायुनी ने कहा ---- ' हुजुर ! महाराणा और उनका घोडा चेतक तो जैसे हवा हैं , उन्हें कैद करना नामुमकिन है l एक टांग टूटने के बावजूद चेतक ने उन्हें 26 गज चौड़ा नाला पार कराया और बाद में वह वहीँ मर गया l उनके हाथी रामप्रसाद को पकड़ने के लिए सात बड़े हाथियों का घेरा बनाया , उस पर चौदह महावतों को बैठाया , तब कहीं जाकर उसे पकड़ने में कामयाबी मिली l शहंशाह अकबर ने स्वयं बाहर जाकर उस हाथी को देखा और देखते रह गए l उन्होंने कहा --- 'ऐसा एक भी हाथी मुगल फौज में नहीं है , इसकी अच्छी तरह देखभाल करो , इसे हम अपने लिए रखेंगे l
उन्होंने ' रामप्रसाद ' का नाम ' पीरप्रसाद ' रख दिया l अकबर की आज्ञा पाकर ढेरों मुगल सैनिक महागज रामप्रसाद की सेवा में लग गए l उसके सामने गन्ने का ढेर लगाया गया , पीने का पानी रखा गया लेकिन वह हाथी भी महाराणा की भांति स्वाधीनता का भक्त था , उसे मुगलों की आधीनता स्वीकार न थी महाराणा उसकी यादों में बसे थे l उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिनों तक न तो मुगलों का दिया गन्ना खाया और न पानी पिया l बस , वहीँ शहीद हो गया l यह देखकर अकबर और उसकी फौज के सिपाही यह सोचने पर मजबूर हो गए कि जिसके हाथी को हम सब मिलकर नहीं झुका पाए , उस महाराणा प्रताप को भला कौन , और कैसे झुका पायेगा ?
महाराणा प्रताप शूरवीर और धैर्यवान थे , उनका भाल कभी झुका नहीं l उनकी कीर्ति अखंड है l
इस घटना को घटित हुए सदियाँ बीत गईं l कहते हैं ----- अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन जब भारत आने की योजना बना रहे थे , तब उन्होंने अपनी माँ पूछा --- ' हिंदुस्तान से उनके लिए क्या लायें ? " तब उनकी माँ कहा ---- " उस महान देश की वीरभूमि हल्दीघाटी से एक मुट्ठी मिटटी लाना , जहाँ राजा ने आधे हिंदुस्तान के बजाय अपनी मातृभूमि को चुना l " दुर्भाग्य लिंकन का यह दौरा रद्द गया l ' बुक ऑफ प्रेसिडेंट यू. एस. ए. ' में इस सच को पढ़ा जा सकता है l
very nice
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