भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को पीड़ितों की सेवा करने के लिए गाँव भेजा l शिष्यों ने आकर बताया कि ' हमने बहुत समझाने का प्रयास किया लेकिन कोई हमारी बात सुनना ही नहीं चाहता l इसलिए हम कोई सेवा कार्य नहीं कर सके l '
भगवान बुद्ध ने उनकी बातों को ध्यान से सुना और स्वयं उठकर गाँव की ओर चल दिए l उनके साथ उनके कुछ प्रमुख शिष्य भी चल पड़े l भगवान बुद्ध गाँव पहुँचने के बाद वहां सफाई करने लगे , अपने हाथ से उन्होंने झाड़ू लगाईं , कचरा उठाया फिर शिष्यों के साथ मिलकर भोजन बनाया l सभी गाँव के लोगों को प्यार से बुलाकर भोजन कराया l वहां महोत्सव जैसा उमंग भरा वातावरण निर्मित हो गया l इसके पश्चात भगवान बुद्ध ने सभी गाँव वालों से पूछा --- " आप लोगों को भोजन तो ठीक मिलता है न ? वर्षा होने वाली है , अपने घरों को ठीक कर लें , यदि कोई आवश्यकता हो तो हम सभी आपकी सहायता करने को तत्पर हैं l " फिर तथागत ने कहा --- यदि आपकी अपने परिवार से संबंधित या जीवन की कोई समस्या है तो निस्संकोच कहें l " गांववालों ने अपनी अनेक समस्याएं सबके सामने व एकांत में भी बतायीं और सबका समाधान पाया l
जब भगवन बुद्ध वापस संघ की ओर प्रस्थान करने को उठे तो सब गाँव वालों की आँखों में आंसू आ गए और सजल नेत्रों से उन्हें भावभरी विदाई दी l
संध्या के समय शिष्यों ने पूछा --- " प्रभु ! आपने लोगों को न तो ध्यान की बात बताई और न ही कोई गूढ़ बात कही l फिर भी वे गाँव के लोग कैसे आपके प्रति समर्पित हो गए l "
भगवान बुद्ध बोले ---- " वत्स ! सेवा का अर्थ उपदेश देना नहीं , वरन लोगों को उनके कष्ट से मुक्ति दिलाना है l जिसको भूख लगी है , वह भला भोजन के अलावा और क्या सोच सकता है ? जिसके सिर पर छत नहीं , वह कैसे ध्यान की बात समझ सकता है ? जिसकी दैनिक जीवन की समस्याएं इतनी गहरी हों वह भला ध्यान और अध्यात्म की बातों को कैसे आत्मसात कर सकता है ? उनके कष्टों का समाधान करना ही उन्हें ध्यान की ओर ले जायेगा l "
भगवान तथागत की वाणी से भिक्षुओं को समझ में आ गया कि त्रुटि कहाँ हुई l उन्होंने केवल बातें कहीं और भगवान बुद्ध ने उन बातों को जीवन में उतारकर कर्म के माध्यम से अभिव्यक्त किया l
भगवान बुद्ध ने उनकी बातों को ध्यान से सुना और स्वयं उठकर गाँव की ओर चल दिए l उनके साथ उनके कुछ प्रमुख शिष्य भी चल पड़े l भगवान बुद्ध गाँव पहुँचने के बाद वहां सफाई करने लगे , अपने हाथ से उन्होंने झाड़ू लगाईं , कचरा उठाया फिर शिष्यों के साथ मिलकर भोजन बनाया l सभी गाँव के लोगों को प्यार से बुलाकर भोजन कराया l वहां महोत्सव जैसा उमंग भरा वातावरण निर्मित हो गया l इसके पश्चात भगवान बुद्ध ने सभी गाँव वालों से पूछा --- " आप लोगों को भोजन तो ठीक मिलता है न ? वर्षा होने वाली है , अपने घरों को ठीक कर लें , यदि कोई आवश्यकता हो तो हम सभी आपकी सहायता करने को तत्पर हैं l " फिर तथागत ने कहा --- यदि आपकी अपने परिवार से संबंधित या जीवन की कोई समस्या है तो निस्संकोच कहें l " गांववालों ने अपनी अनेक समस्याएं सबके सामने व एकांत में भी बतायीं और सबका समाधान पाया l
जब भगवन बुद्ध वापस संघ की ओर प्रस्थान करने को उठे तो सब गाँव वालों की आँखों में आंसू आ गए और सजल नेत्रों से उन्हें भावभरी विदाई दी l
संध्या के समय शिष्यों ने पूछा --- " प्रभु ! आपने लोगों को न तो ध्यान की बात बताई और न ही कोई गूढ़ बात कही l फिर भी वे गाँव के लोग कैसे आपके प्रति समर्पित हो गए l "
भगवान बुद्ध बोले ---- " वत्स ! सेवा का अर्थ उपदेश देना नहीं , वरन लोगों को उनके कष्ट से मुक्ति दिलाना है l जिसको भूख लगी है , वह भला भोजन के अलावा और क्या सोच सकता है ? जिसके सिर पर छत नहीं , वह कैसे ध्यान की बात समझ सकता है ? जिसकी दैनिक जीवन की समस्याएं इतनी गहरी हों वह भला ध्यान और अध्यात्म की बातों को कैसे आत्मसात कर सकता है ? उनके कष्टों का समाधान करना ही उन्हें ध्यान की ओर ले जायेगा l "
भगवान तथागत की वाणी से भिक्षुओं को समझ में आ गया कि त्रुटि कहाँ हुई l उन्होंने केवल बातें कहीं और भगवान बुद्ध ने उन बातों को जीवन में उतारकर कर्म के माध्यम से अभिव्यक्त किया l
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