' जो कार्य आंतरिक भावना से और स्वार्थ को त्याग कर किया जायेगा , वह निश्चय ही श्रेष्ठता और वर्चस्व प्रदान करने वाला होगा l प्रत्यक्ष सफलता तो बहुत छोटी चीज है l महान कार्यों का फल प्राय: देर से ही प्रकट हुआ करता है l इसलिए किसी भी सेवाकार्य में हम को हानि - लाभ का विचार सर्वथा त्याग कर शुद्ध भाव से कर्तव्य पालन का ध्यान रखना ही उचित है l
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