अंग्रेजों के जमाने में जातीय पक्षपात के शिकार होने वाले सर्व प्रथम भारतीय उच्च पदाधिकारी श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी थे , जिसकी चर्चा आज से लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व बहुत दिनों तक देश - विदेश में सुनाई पड़ती रही l
यद्दपि सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का जन्म बंगाल के एक प्रसिद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ था , लेकिन अंग्रेजों की निगाह में वे एक भारतीय थे और भारतीयों को नीचा समझकर वे आगे बढ़ने देना नहीं चाहते थे l उस समय में वे आई. सी. एस. की परीक्षा पास कर के सिलहट ( आसाम ) में असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए l भारतीयों के लिए यह गर्व की बात थी लेकिन अंग्रेज भारतीयों को हीनता की द्रष्टि से देखते थे , इस कारण सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के साथ रुखा व्यवहार करने लगे l श्री बनर्जी बहुत योग्य थे लेकिन उच्च अधिकारी बात - बात में उनकी गलती निकालने लगे l उच्च अधिकारी से वैमनस्य रहने के कारण दो वर्ष के भीतर ही वे सरकारी नौकरी से हटा दिए गए l
इस अन्याय की शिकायत करने के लिए श्री बनर्जी इंगलैंड गए लेकिन जातीयता के आधार पर वहां भी गोरे लोगों का ही पक्ष लिया गया l अब उन्होंने अपना लक्ष्य देश में शिक्षा का प्रसार और शासन में सुधार का बना लिया l एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा ----- " जो अन्याय मेरे साथ किया गया वह हमारे समाज और देशवासियों की नितान्त शक्तिहीनता का द्दोतक है l यह अन्याय मुझे केवल इसलिए सहना पड़ा क्योंकि मैं भारतीय हूँ , एक ऐसे समाज का सदस्य जिसमे कोई संगठन नहीं है , जिसका एक सार्वजनिक मत नहीं है l
उनकी मान्यता थी कि अच्छी शिक्षा देशोन्नति की पहली सीढ़ी है l
यद्दपि सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का जन्म बंगाल के एक प्रसिद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ था , लेकिन अंग्रेजों की निगाह में वे एक भारतीय थे और भारतीयों को नीचा समझकर वे आगे बढ़ने देना नहीं चाहते थे l उस समय में वे आई. सी. एस. की परीक्षा पास कर के सिलहट ( आसाम ) में असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए l भारतीयों के लिए यह गर्व की बात थी लेकिन अंग्रेज भारतीयों को हीनता की द्रष्टि से देखते थे , इस कारण सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के साथ रुखा व्यवहार करने लगे l श्री बनर्जी बहुत योग्य थे लेकिन उच्च अधिकारी बात - बात में उनकी गलती निकालने लगे l उच्च अधिकारी से वैमनस्य रहने के कारण दो वर्ष के भीतर ही वे सरकारी नौकरी से हटा दिए गए l
इस अन्याय की शिकायत करने के लिए श्री बनर्जी इंगलैंड गए लेकिन जातीयता के आधार पर वहां भी गोरे लोगों का ही पक्ष लिया गया l अब उन्होंने अपना लक्ष्य देश में शिक्षा का प्रसार और शासन में सुधार का बना लिया l एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा ----- " जो अन्याय मेरे साथ किया गया वह हमारे समाज और देशवासियों की नितान्त शक्तिहीनता का द्दोतक है l यह अन्याय मुझे केवल इसलिए सहना पड़ा क्योंकि मैं भारतीय हूँ , एक ऐसे समाज का सदस्य जिसमे कोई संगठन नहीं है , जिसका एक सार्वजनिक मत नहीं है l
उनकी मान्यता थी कि अच्छी शिक्षा देशोन्नति की पहली सीढ़ी है l
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