धन और शस्त्र की शक्ति तो प्रत्यक्ष ही दिखाई पड़ती है पर अध्यात्म की शक्ति अप्रत्यक्ष होते हुए भी उन दोनों से बढ़कर है l यह -- विनोबा भावे और महात्मा गाँधी जैसी दैवी विभूतियों की कार्य प्रणाली से सत्य सिद्ध हो जाता है l l
विनोबा भावे ने भूदान के लिए पूरे देश का भ्रमण किया l वे पीरपंजाल को पार कर के कश्मीर पहुंचे तो वहां के मुसलमान निवासियों ने एक गुरु (पीर ) की तरह उनका स्वागत किया l वहां से चलते समय उनको आगरा के प्रसिद्ध डाकू मानसिंह के पुत्र का पत्र मिला , जिसमे लिखा था --- " बाबा ! मुझे फांसी की सजा मिली है l मरने से पहले मैं आपके दर्शन कर लेना चाहता हूँ l " लोगों ने उनसे कहा कि हिंसा से डाकुओं की समस्या नहीं सुधरी, पुलिस जितने डाकुओं को पकड़ती या मारती है , उतने ही फिर नए पैदा हो जाते हैं l आप इस समस्या को प्रेम से सुलझाने का प्रयत्न करें l इन सब बातों को सुनकर विनोबा ने इन डाकुओं को अपना जीवन मार्ग बदलने का सन्देश देने का निश्चय किया l 8 मई को वे आगरा के निकट चम्ब्लों के बीहड़ों में पहुँच गए और एक महीने तक अपना सन्देश डाकुओं तक पहुंचाते रहे कि वे ऐसा गलत काम छोड़ दें और अपनी जिन्दगी सुधार लें l इसका नतीजा यह हुआ कि 20 प्रसिद्ध डाकुओं से विनोबा के सामने अपने हथियार डाल दिए और प्रतिज्ञा की कि अब वे ऐसा काम नहीं करेंगे
एक डाकू ने बम्बई में अखबारमें पढ़ा कि बाबा विनोबा चम्बल के बीहड़ों में घूम - घूम कर भूल में पड़े भाइयों को समझा रहें हैं , उसकी भी अंतरात्मा जागी और उसने भी समर्पण किया l विनोबा ने अपने प्रवचन में कहा --- " आज जो भाई आये हैं वे परमेश्वर के भेजे हुए हैं , हमारा कोई सा थी उनके पास नहीं पहुंचा था l ढाई हजार वर्षों से हम भगवान बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी सुनते आ रहे हैं , आज कलियुग में ऐसी कहानियां बन रहीं हैं l
जो डाकू पुलिस और फौज वालों की मशीनगनों और रायफलों से नहीं डरते थे , वे एक निहत्थे और बूढ़े आदमी के सामने नत मस्तक हो गये , यह अध्यात्म की शक्ति का ही चमत्कार है l
विनोबा भावे ने भूदान के लिए पूरे देश का भ्रमण किया l वे पीरपंजाल को पार कर के कश्मीर पहुंचे तो वहां के मुसलमान निवासियों ने एक गुरु (पीर ) की तरह उनका स्वागत किया l वहां से चलते समय उनको आगरा के प्रसिद्ध डाकू मानसिंह के पुत्र का पत्र मिला , जिसमे लिखा था --- " बाबा ! मुझे फांसी की सजा मिली है l मरने से पहले मैं आपके दर्शन कर लेना चाहता हूँ l " लोगों ने उनसे कहा कि हिंसा से डाकुओं की समस्या नहीं सुधरी, पुलिस जितने डाकुओं को पकड़ती या मारती है , उतने ही फिर नए पैदा हो जाते हैं l आप इस समस्या को प्रेम से सुलझाने का प्रयत्न करें l इन सब बातों को सुनकर विनोबा ने इन डाकुओं को अपना जीवन मार्ग बदलने का सन्देश देने का निश्चय किया l 8 मई को वे आगरा के निकट चम्ब्लों के बीहड़ों में पहुँच गए और एक महीने तक अपना सन्देश डाकुओं तक पहुंचाते रहे कि वे ऐसा गलत काम छोड़ दें और अपनी जिन्दगी सुधार लें l इसका नतीजा यह हुआ कि 20 प्रसिद्ध डाकुओं से विनोबा के सामने अपने हथियार डाल दिए और प्रतिज्ञा की कि अब वे ऐसा काम नहीं करेंगे
एक डाकू ने बम्बई में अखबारमें पढ़ा कि बाबा विनोबा चम्बल के बीहड़ों में घूम - घूम कर भूल में पड़े भाइयों को समझा रहें हैं , उसकी भी अंतरात्मा जागी और उसने भी समर्पण किया l विनोबा ने अपने प्रवचन में कहा --- " आज जो भाई आये हैं वे परमेश्वर के भेजे हुए हैं , हमारा कोई सा थी उनके पास नहीं पहुंचा था l ढाई हजार वर्षों से हम भगवान बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी सुनते आ रहे हैं , आज कलियुग में ऐसी कहानियां बन रहीं हैं l
जो डाकू पुलिस और फौज वालों की मशीनगनों और रायफलों से नहीं डरते थे , वे एक निहत्थे और बूढ़े आदमी के सामने नत मस्तक हो गये , यह अध्यात्म की शक्ति का ही चमत्कार है l
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