बात उन दिनों की है जब गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक भाई जी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार का नाम ' भारत रत्न ' के लिए चुना गया l यह बात उन तक पहुंची तो उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री पं. गोविन्द वल्लभ पन्त से कहा --- " हम इस योग्य नहीं हैं l देश बड़ा है , कई सुयोग्य व्यक्ति होंगे l हमने अगर कुछ किया भी है तो पुरस्कार की आशा से नहीं किया l आप किसी और को दे, दें l "
नेहरु जी को पता चला तो उन्होंने पन्त जी से कहा --- " जाओ और मिलो l आदर - सत्कार से बात करो l कोई बात हो सकती है , पता लगाओ l "
पन्त जी ने जाकर बात की तो पुन: भाई जी बोले ---- " हम स्वयं को इस लायक मानते ही नहीं l हमने भक्तिभाव से परमात्मा की आराधना मानकर ही सब कुछ किया l "
ऐसा ही हुआ , सरकार को अपना इरादा बदलना पड़ा l भाई जी को दैवी सत्ताओं का अनुग्रह सहज ही प्राप्त था , फिर उन्हें लोक सम्मान क्या प्रभावित करता ?
नेहरु जी को पता चला तो उन्होंने पन्त जी से कहा --- " जाओ और मिलो l आदर - सत्कार से बात करो l कोई बात हो सकती है , पता लगाओ l "
पन्त जी ने जाकर बात की तो पुन: भाई जी बोले ---- " हम स्वयं को इस लायक मानते ही नहीं l हमने भक्तिभाव से परमात्मा की आराधना मानकर ही सब कुछ किया l "
ऐसा ही हुआ , सरकार को अपना इरादा बदलना पड़ा l भाई जी को दैवी सत्ताओं का अनुग्रह सहज ही प्राप्त था , फिर उन्हें लोक सम्मान क्या प्रभावित करता ?
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