कहते हैं ईश्वर जिस पर कृपा करते हैं उसे सद्बुद्धि देते हैं , विवेक देते हैं लेकिन जो अहंकारी है , अत्याचारी है , उसके दुर्गुणों की वजह से उसकी बुद्धि , दुर्बुद्धि में बदल जाती है और वह स्वयं अपने विनाश के लिए उत्तरदायी होता है l
एक प्रसंग है ----- राम , रावण के युद्ध से पहले ब्रह्मा जी ने श्रीराम से कहा था कि इस युद्ध में आपको विजयश्री का वरदान आदिशक्ति देवी चंडी से प्राप्त करना होगा l इस हेतु उन्हें प्रसन्न करने के लिए चंडी पूजन और चंडी यज्ञ का आयोजन करें , इस हवन में एक सौ आठ नील कमलों की आवश्यकता पड़ेगी l भगवान राम ने ऐसा करने का संकल्प लिया l लक्ष्मण ने देवताओं की मदद से दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था की l मायावी रावण को यह गुप्त रहस्य पता चल गया और उसने एक नीलकमल गायब कर दिया l हवन का विशिष्ट क्षण समाप्त होने को था , इसने कम समय में नीलकमल की व्यवस्था कर पाना असंभव था l भगवान राम को विदित था कि उनकी आँखों को ' कमलनयन ' ' नवकंजलोचन ' की संज्ञा दी जाती है l अत: वे नीलकमल के स्थान पर तीर से अपनी आँख निकाल्ने को तत्पर हुए , उसी समय देवी चंडी प्रकट हुईं और भगवान राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया l
इधर रावण ने भी विजयश्री के लिए चंडी पाठ प्रारंभ किया l अनेकों ब्राह्मण विधि - विधान से इसे संपन्न करने में लगे थे l एक ब्राह्मण बालक इन पाठ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में कटिबद्ध रहता था l उसकी निस्स्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर ब्राह्मणों ने उसे वरदान मांगने को कहा l बालक ने कहा कि मेरी इच्छा है कि यज्ञ में प्रयुक्त एक शब्द मूर्तिहरिणी के ' ह ' अक्षर के स्थान पर 'क ' उच्चारित किया जाये l ' विनाशकाले विपरीत बुद्धि ' रावण स्वयं प्रकांड विद्वान् था लेकिन वे सब इस गूढ़ार्थ को समझ न सके और बालक के कहे अनुसार ' मूर्तिहरिणी ' के स्थान पर
' मूर्तिकरिणी ' कह कर आहुतियाँ डालने लगे l ' मूर्तिहरिणी ' का अर्थ होता है --- प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ' मूर्तिकरिणी ' का अर्थ होता है --- प्राणियों को पीड़ित करने वाली l
इस विकृत मन्त्र के प्रभाव से देवी अत्यंत क्रोधित हुईं और रावण को ' सर्वनाश ' का अभिशाप दिया l कहते हैं वह बालक स्वयं हनुमानजी थे l
एक प्रसंग है ----- राम , रावण के युद्ध से पहले ब्रह्मा जी ने श्रीराम से कहा था कि इस युद्ध में आपको विजयश्री का वरदान आदिशक्ति देवी चंडी से प्राप्त करना होगा l इस हेतु उन्हें प्रसन्न करने के लिए चंडी पूजन और चंडी यज्ञ का आयोजन करें , इस हवन में एक सौ आठ नील कमलों की आवश्यकता पड़ेगी l भगवान राम ने ऐसा करने का संकल्प लिया l लक्ष्मण ने देवताओं की मदद से दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था की l मायावी रावण को यह गुप्त रहस्य पता चल गया और उसने एक नीलकमल गायब कर दिया l हवन का विशिष्ट क्षण समाप्त होने को था , इसने कम समय में नीलकमल की व्यवस्था कर पाना असंभव था l भगवान राम को विदित था कि उनकी आँखों को ' कमलनयन ' ' नवकंजलोचन ' की संज्ञा दी जाती है l अत: वे नीलकमल के स्थान पर तीर से अपनी आँख निकाल्ने को तत्पर हुए , उसी समय देवी चंडी प्रकट हुईं और भगवान राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया l
इधर रावण ने भी विजयश्री के लिए चंडी पाठ प्रारंभ किया l अनेकों ब्राह्मण विधि - विधान से इसे संपन्न करने में लगे थे l एक ब्राह्मण बालक इन पाठ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में कटिबद्ध रहता था l उसकी निस्स्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर ब्राह्मणों ने उसे वरदान मांगने को कहा l बालक ने कहा कि मेरी इच्छा है कि यज्ञ में प्रयुक्त एक शब्द मूर्तिहरिणी के ' ह ' अक्षर के स्थान पर 'क ' उच्चारित किया जाये l ' विनाशकाले विपरीत बुद्धि ' रावण स्वयं प्रकांड विद्वान् था लेकिन वे सब इस गूढ़ार्थ को समझ न सके और बालक के कहे अनुसार ' मूर्तिहरिणी ' के स्थान पर
' मूर्तिकरिणी ' कह कर आहुतियाँ डालने लगे l ' मूर्तिहरिणी ' का अर्थ होता है --- प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ' मूर्तिकरिणी ' का अर्थ होता है --- प्राणियों को पीड़ित करने वाली l
इस विकृत मन्त्र के प्रभाव से देवी अत्यंत क्रोधित हुईं और रावण को ' सर्वनाश ' का अभिशाप दिया l कहते हैं वह बालक स्वयं हनुमानजी थे l
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