हमारे धर्म ग्रंथों का एक मूल मन्त्र है ----- जो नम्र होकर झुकते हैं , वही ऊपर उठते हैं l भारतीय संस्कृति में इसी विनम्रता को व्यक्त करने के लिए प्रणाम , अभिवादन और बड़ों के समक्ष झुककर आशीर्वाद लेने की प्रथा है l
विनम्रता न केवल हमारे व्यक्तित्व में निखार लाती है , बल्कि कई बार सफलता का कारण भी बनती है l
महाभारत के युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह के पास गए , वे बाणों की शैया पर थे l युधिष्ठिर ने विनम्रता पूर्वक उनसे धर्मोपदेश देने का निवेदन किया l भीष्म पितामह ने कहा -----
नदी समुद्र तक पहुँचती है तो अपने साथ पानी के अतिरिक्त बड़े - बड़े लम्बे पेड़ साथ ले आती है l एक दिन समुद्र ने नदी से पूछा कि तुम पेड़ों को तो अपने प्रवाह में ले आती हो परन्तु कोमल बेलों और नाजुक पौधों को क्यों नहीं लाती हो ?
नदी बोली कि जब - जब पानी का बहाव बढ़ता है तब बेलें झुक जाती हैं और झुककर पानी को रास्ता दे देती हैं , इसलिए वे बच जाती हैं l जबकि पेड़ तानकर खड़े रहते हैं इसलिए अपना अस्तित्व खो बैठते हैं l
भीष्म ने कहा युधिष्ठिर ठीक वैसे ही , जो जीवन में विनम्र रहते हैं , उनका अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होता l
विनम्रता न केवल हमारे व्यक्तित्व में निखार लाती है , बल्कि कई बार सफलता का कारण भी बनती है l
महाभारत के युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह के पास गए , वे बाणों की शैया पर थे l युधिष्ठिर ने विनम्रता पूर्वक उनसे धर्मोपदेश देने का निवेदन किया l भीष्म पितामह ने कहा -----
नदी समुद्र तक पहुँचती है तो अपने साथ पानी के अतिरिक्त बड़े - बड़े लम्बे पेड़ साथ ले आती है l एक दिन समुद्र ने नदी से पूछा कि तुम पेड़ों को तो अपने प्रवाह में ले आती हो परन्तु कोमल बेलों और नाजुक पौधों को क्यों नहीं लाती हो ?
नदी बोली कि जब - जब पानी का बहाव बढ़ता है तब बेलें झुक जाती हैं और झुककर पानी को रास्ता दे देती हैं , इसलिए वे बच जाती हैं l जबकि पेड़ तानकर खड़े रहते हैं इसलिए अपना अस्तित्व खो बैठते हैं l
भीष्म ने कहा युधिष्ठिर ठीक वैसे ही , जो जीवन में विनम्र रहते हैं , उनका अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होता l
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