' यह मनुष्य की कमजोरी है कि वह महाकाव्यों से , इतिहास से अच्छी बातें --- स्वाभिमान , वीरता , सम्मान , साहस , उदारता , सेवा - संवेदना जैसे सद्गुणों को नहीं सीखता , अपने जीवन में नहीं अपनाता लेकिन दुर्गुणों को बहुत जल्दी अपनाता है जैसे रावण और दुर्योधन का अहंकार , दुर्योधन द्वारा सारे जीवन किये जाने वाले षड्यंत्र , दुशासन द्वारा चीर- हरण , ईर्ष्या - द्वेष , अपने ही भाइयों का राज्य हड़प लेना , भगवान श्रीकृष्ण को ही अपमानित करना l ये सब अवगुण आज समाज में बड़े पैमाने पर मिल जायेंगे l ----
महाभारत का प्रसंग है ----- अर्जुन ने जब खांडव वन को जलाया , तब अश्वसेन नामक सर्प की माता बेटे को निगलकर आकाश में उड़ गई , अर्जुन ने उसका मस्तक बाणों काट डाला l सर्पिणी तो मर गई लेकिन अश्वसेन बचकर भाग गया l उसी वैर का बदला लेने वह कुरुक्षेत्र की रणभूमि में आया l उसने कर्ण से कहा ---- " मैं विश्रुत भुजंगों स्वामी हूँ l जन्म से ही पार्थ शत्रु हूँ l तेरा हित चाहता हूँ l बस एक बार अपने धनुष पर मुझे चढ़ाकर मेरे महाशत्रु तक मुझे पहुंचा दे l तू मुझे सहारा दे l मैं तेरे शत्रु को मारूंगा l "
कर्ण हँसे और बोले --- " जय का समस्त साधन नर की बाँहों में रहता है , उस पर भी मैं तेरे साथ मिलकर ---- सांप के साथ मिलकर मनुज के साथ युद्ध करूँ , निष्ठा के विरुद्ध आचरण करूँ ! मैं मानवता को क्या मुंह दिखाऊंगा ? "
इसी प्रसंग पर रामधारी सिंह ' दिनकर ' ने अपने प्रसिद्ध काव्य ' रश्मिरथी ' में लिखा है -----
" रे अश्वसेन तेरे अनेक वंशज हैं , छिपे नरों में भी , सीमित वन में ही नहीं , बहुत बसते पुर - ग्राम - घरों में भी l "
सच ही है , आज सर्प रूप में कितने अश्वसेन मनुष्यों के बीच बैठे हैं ---- राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लीन ! महाभारत की ही पुनरावृति है l
महाभारत का प्रसंग है ----- अर्जुन ने जब खांडव वन को जलाया , तब अश्वसेन नामक सर्प की माता बेटे को निगलकर आकाश में उड़ गई , अर्जुन ने उसका मस्तक बाणों काट डाला l सर्पिणी तो मर गई लेकिन अश्वसेन बचकर भाग गया l उसी वैर का बदला लेने वह कुरुक्षेत्र की रणभूमि में आया l उसने कर्ण से कहा ---- " मैं विश्रुत भुजंगों स्वामी हूँ l जन्म से ही पार्थ शत्रु हूँ l तेरा हित चाहता हूँ l बस एक बार अपने धनुष पर मुझे चढ़ाकर मेरे महाशत्रु तक मुझे पहुंचा दे l तू मुझे सहारा दे l मैं तेरे शत्रु को मारूंगा l "
कर्ण हँसे और बोले --- " जय का समस्त साधन नर की बाँहों में रहता है , उस पर भी मैं तेरे साथ मिलकर ---- सांप के साथ मिलकर मनुज के साथ युद्ध करूँ , निष्ठा के विरुद्ध आचरण करूँ ! मैं मानवता को क्या मुंह दिखाऊंगा ? "
इसी प्रसंग पर रामधारी सिंह ' दिनकर ' ने अपने प्रसिद्ध काव्य ' रश्मिरथी ' में लिखा है -----
" रे अश्वसेन तेरे अनेक वंशज हैं , छिपे नरों में भी , सीमित वन में ही नहीं , बहुत बसते पुर - ग्राम - घरों में भी l "
सच ही है , आज सर्प रूप में कितने अश्वसेन मनुष्यों के बीच बैठे हैं ---- राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लीन ! महाभारत की ही पुनरावृति है l
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