आचार्य श्री ने लिखा है ----- " विकृत चिंतन और भ्रष्ट चरित्र ने इन दिनों सूक्ष्म जगत के अद्रश्य वातावरण को प्रदूषण से भर दिया है l प्रकृति की सरल स्वाभाविकता बदल गई है और वह रुष्ट होकर दैवी विपत्तियाँ बरसाने लगी है l कहीं अनावृष्टि , कहीं अतिवृष्टि , अकाल , भूकंप जैसी विपत्तियाँ बड़े क्षेत्रों को प्रभावित कर रही हैं l मानसिक रोगों में तेजी से वृद्धि हुई है l कामुकता बड़ी है l मानवीय संवेदना और व्यक्तित्व के स्तर में भरी गिरावट हुई है l युद्धोन्माद और आतंकवाद बढ़ता जा रहा है l हर कोई अपने को असुरक्षित महसूस कर रहा है l कभी जल - प्रलय तो कभी हिम - प्रलय जैसी स्थिति लगती है l " नवम्बर 1988 , अखण्ड ज्योति में लिखी उनकी यह बात आज अक्षरशः सत्य है l
उनका विचार था कि इस स्थिति निपटने के लिए आध्यात्मिक उपचार ही कारगर होगा l व्यक्ति अपने विचारों का परिष्कार करे , जीवन को श्रेष्ठ बनाये l इससे समाज परिष्कृत होगा l
एक प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा था कि हमारे देश में सात - आठ लाख बाबाजी हैं जो आलस और विलासिता का जीवन जीते हैं , समाज पर बोझ हैं l यदि सात - आठ बाबाजी प्रत्येक गाँव में जाकर अपने धर्म के पादरी बनकर समाज की सेवा करें तो शिक्षा की समस्या , सामाजिक कुरीतियाँ , साक्षरता , गंदगी , पिछड़ापन आदि सभी समस्याएं ठीक हो जाएँ l
धर्म की आड़ में देवताओं का बहाना करके जो ढोंग है वह समाज के लिए कष्टदायक है l
उनका विचार था कि इस स्थिति निपटने के लिए आध्यात्मिक उपचार ही कारगर होगा l व्यक्ति अपने विचारों का परिष्कार करे , जीवन को श्रेष्ठ बनाये l इससे समाज परिष्कृत होगा l
एक प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा था कि हमारे देश में सात - आठ लाख बाबाजी हैं जो आलस और विलासिता का जीवन जीते हैं , समाज पर बोझ हैं l यदि सात - आठ बाबाजी प्रत्येक गाँव में जाकर अपने धर्म के पादरी बनकर समाज की सेवा करें तो शिक्षा की समस्या , सामाजिक कुरीतियाँ , साक्षरता , गंदगी , पिछड़ापन आदि सभी समस्याएं ठीक हो जाएँ l
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