एक संत अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे बैठे हुए थे l उनसे थोड़ी दूर एक व्यक्ति गंगा नहा रहा था l उसने बहुत देर तक गंगा स्नान किया फिर किनारे बैठकर भोजन करने लगा l उसी समय एक अपंग व्यक्ति उसके पास आकर भोजन की याचना करने लगा l उसे कुछ देने के बजाय वह व्यक्ति उस अपंग को भद्दी गालियाँ देने लगा और अपने पास से हटाने के लिए धक्का भी देने लगा l यह देख संत शिष्यों से बोले ---- " आज गंगा स्नान का पाप भी देख लिया l " वे बोले ---- "केवल बाहर से शरीर साफ कर लेने से मन पर चढ़ा मेल दूर नहीं होता l जिसके ह्रदय में दीन - दुःखियों के लिए करुणा नहीं , संवेदना नहीं , वो लाख प्रयत्न कर ले , उसे पुण्य का नहीं , केवल पाप का भागी बनना पड़ेगा l अध्यात्म का सार बाह्य क्रिया कलापों में नहीं , वरन आंतरिक परिष्कार में है l "
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