नियति के कुछ ऐसे पाश होते हैं , जिन्हें अनिवार्य रूप से भोगना ही पड़ता है l पुरुषार्थी नियति के ऐसे पाशों को या तो उखाड़ फेंकता है या फिर इन्हें झेलने की असीम सामर्थ्य उत्पन्न करता है l सच्चा पुरुषार्थी अपनी नियति को बदलता है और दूसरों की नियति को भी परिवर्तित करने की क्षमता रखता है l उसके पास तपश्चर्या की असीम और अपरिमित शक्ति होती है l पुरुषार्थ की चरम अवस्था ही तपश्चर्या है l
पुरुषार्थी के पास तप की शक्ति होती है l आचार्य जी का स्पष्ट मत है --- कर्मयोगी बनो l संसार में रहकर सुख - दुःख , मान - अपमान को समभाव से सहन करना , कष्टों को असीम धैर्य से सहन करना और प्रतिशोध की अग्नि से दूर रहकर अपने लक्ष्य , अपनी मंजिल की ओर बढ़ना ही तप है l ऐसे पुरुषार्थी बनकर ही नवीन भविष्य का निर्माण किया जा सकता है l
पुरुषार्थी के पास तप की शक्ति होती है l आचार्य जी का स्पष्ट मत है --- कर्मयोगी बनो l संसार में रहकर सुख - दुःख , मान - अपमान को समभाव से सहन करना , कष्टों को असीम धैर्य से सहन करना और प्रतिशोध की अग्नि से दूर रहकर अपने लक्ष्य , अपनी मंजिल की ओर बढ़ना ही तप है l ऐसे पुरुषार्थी बनकर ही नवीन भविष्य का निर्माण किया जा सकता है l
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