जो स्वयं से प्रेम करते हैं , जिनका मन मनोग्रंथियों से मुक्त होता है वे सही मायने में शांति और आनंद का जीवन जीते हैं l लेकिन जो स्वयं से प्रेम नहीं करते वे व्यक्ति जीवन भर भिखारी की तरह दीन - हीन मन:स्थिति का जीवन जीते हैं l उनके पास सब कुछ होता है , लेकिन हीनता की ग्रंथि के कारण वे उसके महत्व को समझ नहीं पाते l ---
सिकंदर एक ऐसा व्यक्ति था , जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी लेकिन वह हीनता की ग्रंथि का शिकार था और इसी मनोग्रंथि के कारण पूरे विश्व को जीतने की महत्वाकांक्षा मन में संजोये था l अपनी इस विश्व विजय यात्रा पर निकलने से पहले वह डायोजिनीस नामक फ़कीर से मिलने गया , जो हमेशा परमानन्द की अवस्था में रहता था l सिकंदर को देखते ही डायोजिनीस ने पूछा --- " तुम कहाँ जा रहे हो ? "
सिकंदर ने कहा --- " मुझे पूरा एशिया महाद्वीप जीतना है l "
डायोजिनीस ने पूछा ----" उसके बाद क्या करोगे ? "
सिकंदर ---- " उसके बाद भारत को जीतना है l "
डायोजिनीस ----- "उसके बाद ? '
सिकंदर ---- " उसके बाद शेष दुनिया को जीतूँगा l
डायोजिनीस ---- " और उसके बाद ? "
सिकंदर ने खिसिआते हुए जवाब दिया ---- " उसके बाद मैं आराम करूँगा l "
डायोजिनीस हंसने लगे और बोले --- " जो आराम तुम इतने दिनों बाद करोगे , वह तो मैं अभी भी कर रहा हूँ l यदि तुम आख़िरकार आराम ही करना चाहते हो तो इतना कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है l तुम भी यहाँ पर आराम कर सकते हो l "
डायोजिनीस की बात सुनकर सिकंदर सोचने लगा उसके पास सब कुछ है , पर शांति नहीं परन्तु डायोजिनीस के पास कुछ नहीं है , पर उसका मन शांति और आनंद से भरा हुआ है l
जिनका मन मनोग्रंथियों से घिरा हुआ होता है वे बेचैन , अशांत व परेशान रहते हैं l ऐसे व्यक्ति चाहे पूरा विश्व - भ्रमण कर लें , ढेर सारी सम्पदा एकत्र कर लें , लेकिन फिर भी वे अपने मन के अँधेरे को दूर नहीं कर पाते l उनका मन अशांत ही बना रहता है l
सिकंदर एक ऐसा व्यक्ति था , जिसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी लेकिन वह हीनता की ग्रंथि का शिकार था और इसी मनोग्रंथि के कारण पूरे विश्व को जीतने की महत्वाकांक्षा मन में संजोये था l अपनी इस विश्व विजय यात्रा पर निकलने से पहले वह डायोजिनीस नामक फ़कीर से मिलने गया , जो हमेशा परमानन्द की अवस्था में रहता था l सिकंदर को देखते ही डायोजिनीस ने पूछा --- " तुम कहाँ जा रहे हो ? "
सिकंदर ने कहा --- " मुझे पूरा एशिया महाद्वीप जीतना है l "
डायोजिनीस ने पूछा ----" उसके बाद क्या करोगे ? "
सिकंदर ---- " उसके बाद भारत को जीतना है l "
डायोजिनीस ----- "उसके बाद ? '
सिकंदर ---- " उसके बाद शेष दुनिया को जीतूँगा l
डायोजिनीस ---- " और उसके बाद ? "
सिकंदर ने खिसिआते हुए जवाब दिया ---- " उसके बाद मैं आराम करूँगा l "
डायोजिनीस हंसने लगे और बोले --- " जो आराम तुम इतने दिनों बाद करोगे , वह तो मैं अभी भी कर रहा हूँ l यदि तुम आख़िरकार आराम ही करना चाहते हो तो इतना कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है l तुम भी यहाँ पर आराम कर सकते हो l "
डायोजिनीस की बात सुनकर सिकंदर सोचने लगा उसके पास सब कुछ है , पर शांति नहीं परन्तु डायोजिनीस के पास कुछ नहीं है , पर उसका मन शांति और आनंद से भरा हुआ है l
जिनका मन मनोग्रंथियों से घिरा हुआ होता है वे बेचैन , अशांत व परेशान रहते हैं l ऐसे व्यक्ति चाहे पूरा विश्व - भ्रमण कर लें , ढेर सारी सम्पदा एकत्र कर लें , लेकिन फिर भी वे अपने मन के अँधेरे को दूर नहीं कर पाते l उनका मन अशांत ही बना रहता है l
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