इस स्रष्टि में सबसे महत्वपूर्ण मनुष्य के कर्म हैं l जीवन में पुण्य कर्मों के उदय होने से मनुष्य सफलता , सम्मान , यश प्राप्त करता है , वहीँ पाप कर्मों के उदय होने से अपयश , असफलता , रोग व पीड़ा का भागी बनता है l
इस संसार में ऐसा कभी नहीं होता कि अच्छे या बुरे कर्म किये जाएँ और उनका तुरंत फल मिल जाये l व्यक्ति कर्म तो करता है , लेकिन उसका फल कब मिलेगा , यह काल ( समय ) निश्चित करता है l
एक प्रसंग है ----- राजा के यहाँ चोरी हुई तो ऋषि मांडव्य के आश्रम में छिपे डाकू पकड़े गए l राज्य के अधिकारी डाकुओं के साथ उन्हें आश्रय दिए जाने के अपराध में ऋषि को भी पकड़ कर ले गए l न्यायालय में वहां के नियम के अनुसार सभी को सूली पर चढ़ाने का दंड मिला l अन्य ऋषियों ने दरबार में आकर ऋषि मांडव्य की निर्दोषता बताई l राजा ने फांसी तुरंत रुकवा दी और उन्हें तख्ते से नीचे उतार लिया गया l तब नतक उन्हें काफी शारीरिक , मानसिक यातना मिल चुकी थी l राजा ने क्षमा मांगी l ऋषि मांडव्य ने कहा ---- " जब मैं सूली पर था , तब ध्यान में जाकर देखा ---- पूर्वजन्म में मैंने अनेक पशु - पक्षियों को सताया था l उसी के कारण भारी यातनाओं के साथ मरना मेरे विधान में लिखा था , पर मेरी इस जन्म की तपस्या और सेवा ने उन कष्टों को घटा दिया l पूर्णत: शमन तो किसी पापकर्म का नहीं हो सकता l आप परेशान न हों l जितना भुगतना था , उतना मैंने भुगत लिया l "
तप से , सेवा कार्य से कर्म बंधन शिथिल किए जा सकते हैं l कर्मों के फल से कोई बच नहीं सकता l
इस संसार में ऐसा कभी नहीं होता कि अच्छे या बुरे कर्म किये जाएँ और उनका तुरंत फल मिल जाये l व्यक्ति कर्म तो करता है , लेकिन उसका फल कब मिलेगा , यह काल ( समय ) निश्चित करता है l
एक प्रसंग है ----- राजा के यहाँ चोरी हुई तो ऋषि मांडव्य के आश्रम में छिपे डाकू पकड़े गए l राज्य के अधिकारी डाकुओं के साथ उन्हें आश्रय दिए जाने के अपराध में ऋषि को भी पकड़ कर ले गए l न्यायालय में वहां के नियम के अनुसार सभी को सूली पर चढ़ाने का दंड मिला l अन्य ऋषियों ने दरबार में आकर ऋषि मांडव्य की निर्दोषता बताई l राजा ने फांसी तुरंत रुकवा दी और उन्हें तख्ते से नीचे उतार लिया गया l तब नतक उन्हें काफी शारीरिक , मानसिक यातना मिल चुकी थी l राजा ने क्षमा मांगी l ऋषि मांडव्य ने कहा ---- " जब मैं सूली पर था , तब ध्यान में जाकर देखा ---- पूर्वजन्म में मैंने अनेक पशु - पक्षियों को सताया था l उसी के कारण भारी यातनाओं के साथ मरना मेरे विधान में लिखा था , पर मेरी इस जन्म की तपस्या और सेवा ने उन कष्टों को घटा दिया l पूर्णत: शमन तो किसी पापकर्म का नहीं हो सकता l आप परेशान न हों l जितना भुगतना था , उतना मैंने भुगत लिया l "
तप से , सेवा कार्य से कर्म बंधन शिथिल किए जा सकते हैं l कर्मों के फल से कोई बच नहीं सकता l
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